रविवार, 29 दिसंबर 2019

केस बनती जाती औरतें

केस बनती जाती औरतें
अपनी संस्कृति और परम्पराओं पर
नाज़ करने वाले
तथाकथित .. एक सभ्य समाज में
सरे आम .... बस एक केस बनकर
फाइलों में दब जाती हैं औरतें
हाँ , केस बन जाती हैं
जीती जागती औरतें |
फिर शुरू हो जाती है एक लम्बी प्रक्रिया
या कहें .. प्रतीक्षा
न्याय की ,
 इस न्याय को पाने के लिए
जाने कितने अन्याय झेलती हैं औरतें
हाँ, न्याय की अँधी मूरत के सामने
खुद विवशता की मूरत बन जाती हैं औरतें |
दोहराई जाती है फिर–फिर
अमानवीयता ही नहीं पैचाशिकता की
दुसह्य गाथा
और थरथरा जाती हैं फिर-फिर
मात्र रूह बनकर रह गई औरतें|
कुछ पोस्टरों
कुछ नारों
कुछ कैंडल मार्च के बीच
आज़ाद घूमते या
जेल में मटन करी खाते दरिंदों के
भरे पेट और भूखी आँखों से
टपकती लार देख
फिर सुलग उठते हैं उनके
जले , क्षत-विक्षत तन
फिर एक और मौत मर जाती हैं
वो मर चुकी या
अधमरी औरतें |
हाँ, लोगों के लिए तो बस एक केस बन जाती हैं औरतें |
और्रतों का चल-चलन का पाठ पढ़ाते
पहनने-ओढ़ने का सलीका सिखाते
उनके हँसने-बोलने पर बदचलनी का सर्टिफिकेट दिखाते
समाज की पट्टी बँधी आँखों को
दुधमुँही बच्चियों के
नुचे हुए नर्म जिस्म दिखा
लड़कों की परवरिश पर
सवाल उठाती हैं
समाज को उसकी वहशत का आइना दिखाती हैं
खुद वहशत का शिकार बनीं औरतें|
केस-दर-केस  ..... केस-दर-केस
अनसुलझी गुत्थियों में उलझीं
समाज के सियाह पैरहन पर
आदमी की दरिंदगी का मैडल बन
लटक जाती हैं औरतें ......
पता है .... कल सब कुछ भूल
फिर काम पर लग जाएँगे,
खुले आम घूमते दरिन्दों के
फिर हौंसले बढ़ जाएँगे,
फिर किसी औरत की शाहिदगी का
इंतज़ार करेगा समाज
यूँ केस बनती औरतें के किस्से बढ़ते जाएँगे
कब तक ?
आखिर कब तक एक औरत को हम
केस बना कर
फाइलों की कब्र में दफनाएँगे ..
और  सभ्य कहलाये जाएँगे ??



मंगलवार, 3 दिसंबर 2019

पति बेचारा.................. नहीं

ये तो सभी जानते हैं कि यदि पति या पिता अपनी पत्नी या सन्तान का भरण पोषण नहीं करते तो वे गुजारा भत्ता मांग सकते हैं किन्तु ये कुछ ही लोग जानते होंगे कि पति भी गुजारा भत्ता मांग सकता है और हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 25 ऐसी ही व्यवस्था करती है. 
 बरेली का एक मामला ऐसी ही जानकारी हमें दे रहा है. बेरोजगार पति ने सरकारी सेवारत अपनी पत्नी से गुजारा भत्ता हासिल करने के लिए अदालत में अर्जी दी है। इस अर्जी में उसने कहा है कि वह खुद भी पढ़ा लिखा बेरोजगार है, फिर भी उसने अपनी पत्नी की सरकारी नौकरी लगवाने के लिए पांच लाख रुपये खर्च किए थे। मगर नौकरी लगने के बाद जब अच्छी-खासी तन्ख्वाह उसकी पत्नी के हाथ आने लगी तो उसके तेवर बदल गए। कुछ ही समय बाद सारा जेवर लेकर उसने उसका घर छोड़ दिया। उसने अदालत से फरियाद की है कि उसकी बेरोजगारी का ख्याल रखते हुए उसे उसकी पत्नी से गुजारा भत्ता दिलाया जाए।
     बिशारतगंज के गांव बलेई भगवंतपुर में रहने वाले 25 वर्षीय योगेश कुमार ने अपने वकील के जरिये सोमवार को अदालत में अर्जी दाखिल की। इसमें योगेश ने कहा है कि उसकी शादी तीन जून, 2015 को से हुई थी। शादी के बाद उन्हें पता चला कि उनकी पत्नी तुनकमिजाज है। कुछ दिन बाद ही वह छोटी-छोटी बातों पर नाराज होकर अपने मायके जाने लगी। हालांकि फिर भी वह उसके साथ निबाह करते रहे। इसी दौरान उनके ससुर यशवीर सिंह ने उससे कहा कि अगर वह पांच लाख रुपये खर्च करें तो वह उनकी पत्नी की सरकारी नौकरी लगवा सकते हैं। उन्होंने रिश्तेदारों से उधार लेकर यह रकम ससुर को दे दी। 31 मई 2016 को उनकी पत्नी को वन विभाग में नौकरी मिल गई और अब वह डीएफओ बरेली के कार्यालय में तैनात है।
योगेश का कहना है कि सरकारी नौकरी लगते ही उनकी पत्नी का उसके साथ रहा-सहा लगाव भी खत्म हो गया। एक दिन उनकी गैरमौजूदगी में उसने उनके घर आकर तीन लाख के जेवर और पांच हजार का कैश निकाला और वापस चली गई। काफी समझाने के बाद भी फिर उनके घर नहीं लौटी। वह कई बार उसे बुलाने गया लेकिन उसने उनके साथ रहने से इनकार कर दिया। उन्होंने अदालत में मुकदमा भी दायर किया मगर फिर भी वह उनके साथ रहने को तैयार नहीं हुई। योगेश ने कहा कि उनकी पत्नी सरकारी नौकर है। उसे 28 हजार रुपये वेतन मिल रहा है जबकि वह बेरोजगार हैं। आय का कोई जरिया भी नहीं है लिहाजा उनकी पत्नी पर उनका 14 हजार रुपये महीने के गुजारा भत्ते का दावा बनता है जो वह आसानी से उन्हें दे सकती है। अदालत ने इस मामले में सुनवाई के लिए 16 दिसंबर की तारीख तय की है।
पति भी मांग सकता है गुजारा भत्ता
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के मुताबिक कोई भी पक्षकार, वह चाहे पति हो या पत्नी, एक-दूसरे से गुजारा भत्ता की मांग कर सकते हैं। अदालत इस मामले में अपने क्षेत्राधिकार का प्रयोग करके ऐसा आदेश भी कर सकती है। इस मामले में आर्थिक स्थिति के अलावा पक्षकारों का रवैया भी अहमियत रखता है। हालात बदलने पर आदेश में परिवर्तन भी किया जा सकता है।
      इसलिए कानून तो योगेश के पक्ष में है बाकी गुजारा भत्ता पत्नी को उसे देना चाहिए या नहीं यह कोर्ट द्वारा वास्तविक स्थिति देखकर ही निश्चित किया जाएगा.
          शालिनी कौशिक एडवोकेट
             (कानूनी ज्ञान) 

सोमवार, 12 अगस्त 2019

इंडिया वर्सेस एडवेंचर्स मोदी


नई दिल्ली: डिस्कवरी चैनल के एडवेंचर शो 'मैन वर्सेज वाइल्ड (Man VS Wild)' के स्पेशल एपिसोड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi), बेयर ग्रिल्स (Bear Grylls) के साथ जंगल में खतरों से खेलते नजर आएंगे. पीएम नरेंद्र मोदी और बेयर ग्रिल्स (Bear Grylls) का ये स्पेशल एपिसोड उत्तराखंड के जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क (Jim Corbett National Park) में शूट हुआ है. इस शो के जरिए पीएम नरेंद्र मोदी के जीवन का कुछ अलग ही अंदाज देखने को मिलेगा. डिस्कवरी चैनल पर नरेंद्र मोदी का ये स्पेशल एपिसोड 12 अगस्त यानी आज टेलीकॉस्ट होगा. कहा ये जा रहा है कि एपिसोड को लेकर पाकिस्तान के लोगों का दर्द भी छलक रहा है जबकि अगर हम देश के ताज़ा हालात पर गौर फरमाएं तो हमें भी प्रधानमंत्री जैसे प्रमुख पद पर बैठे हुए नरेंद्र मोदी जी का यह सब करना गैर ज़रूरी और देश की आवाम के साथ धोखा नज़र आ रहा है.
         आज के हालात कहें या तब के हालात जब प्रधानमंत्री जी ने मैन वर्सेस वाइल्ड की शूटिंग की, दोनों ही समय में जब इन्हें सेना के, आम जनता के साथ खड़े होना चाहिए था, ये शूटिंग कर रहे थे. मैन वर्सेस वाइल्ड की जब शूटिंग हो रही थी तभी पुलवामा आतंकी हमला हुआ सेना के 42 जवान शहीद हो गए, पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी शूटिंग नहीं रोकी, आज जब यह टेलीकास्ट हो रहा है तब देश के हालात क्या हैं ये सभी जानते हैं फिर भी सबूत के बगैर कुछ भी साबित नहीं किया जा सकता इसी मद्देनजर कुछ आज के समाचार अमर उजाला व दैनिक भास्कर से उद्भृत हैं -
देश के कई राज्यों में इस वक्त बाढ़ से बुरा हाल है। कर्नाटक में भी लोग बाढ़ के कारण परेशान हैं। यहां इंसान तो क्या जानवर तक की जान पर खतरा मंडरा रहा है। इसी बीच एक वीडियो सामने आया है। जिसमें दिख रहा है कि बेलगाम की रायबाग तहसील में विशाल मगरमच्छ एक घर की छत पर चढ़ गया है। लोगों ने इस घटना को कैमरे में कैद कर लिया है।

        विशाखापत्तनम में अपतटीय आपूर्ति जहाज (ऑफशोर सप्लाई वेसल) कोस्टल जगुआर जहाज में सोमवार सुबह भीषण आग लग गई। जिसके बाद जहाज में सवार 29 लोगों ने पानी में कूद गए। घटना की जानकारी होने के बाद मौके पर पहुंची भारतीय तटरक्षक बल की टीम ने 28 क्रू मेंबर्स को बचा लिया। इस घटना में एक आदमी का पता नहीं चल सका है जिसकी खोज जारी है।
            उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में रातभर से हो रही बारिश से जलप्रलय जैसी स्थिति पैदा हो गई है। यहां पहाड़ी नदियां और बरसाती नाले उफान पर हैं।
         बड़वानी. नर्मदा का जलस्तर बढ़ने से टापू बने राजघाट में बिजली के खुले तारों की चपेट में आने से सोमवार सुबहदो डूब प्रभावितों की मौत हो गई, वहीं तीन की हालतगंभीर होने पर अस्पताल में भर्ती करवाया गया। लापरवाही के चलते हुए हादसे से गुस्साए लोगों ने शव को नाव में रखकर विरोध प्रदर्शन किया गया। उधर, आंदोलन प्रमुख मेघा पाटकरने इसे बेकसूरों की हत्या बताते हुएआंदोलन तेज करने की सरकार को चेतावनी दी है।
        जानकारी के अनुसार सोमवार सुबह राजधाट के 5 डूब प्रभावित नाव से खाना लेकर जा रहे थे, तभी उनकी नावबिजली के खुले तारोंकी चपेट में आ गई। बिजली का झटका लगने से नाव में सवारराजघाट निवासी चिमन पिता नटवर दरबार और संतोष पिता लालसिंह की मौत हो गई। हादसे में तीन लाेग झुलस कर घायल हो गए।हादसे की सूचना के बाद पुलिस और प्रशासन के अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे, जहां उन्हें जनता के रोष का सामना करना पड़ा। लोगों का आरोप है कि प्रशासन की लापरवाहीं के चलते यह हादसा हुआ है।
         देश के ऐसे हालात में क्या कोई इस तरह के एडवेंचर की सोच सकता है जिस तरह के एडवेंचर दिखा कर मोदी अपनी विशिष्ट पहचान बनाना चाहते हैं. बॉलीवुड सितारों से मिलना हो तो मोदी जी के पास समय है देश के किसानों व सेवानिवृत्त जवानों को समय की कमी कह लौटा दिया जाता है, इंटरव्यू देना हो तो करण थापर को दोस्ती बनी रहे कहकर इंटरव्यू रोक अक्षय कुमार जिनका पत्रकारिता से दूर दूर का कोई रिश्ता नहीं को इंटरव्यू दिया जाता है, ट्विटर पर अपनी सक्रियता दिखानी हो तो ट्विंकल खन्ना के ट्वीट पढ़कर दिखाई जाती है और भी बहुत कुछ ऐसा है जो मोदी जी की विशिष्टता ज़ाहिर करता है पहले के सभी प्रधानमंत्रियों से क्योंकि पहले के जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं वे मोदी जी के अनुसार उस विशिष्ट प्रतिभा के धनी नहीं थे जिससे मोदी जी सराबोर हैं.
            ये भारत देश का गौरव है कि यहां नेहरू, इंदिरा, राजीव सभी को भुला दिया जाएगा क्योंकि ये एक वंश परंपरा से जुड़े हुए हैं और इनके वंशजों के पास आज वह वाक चातुर्य नहीं है जिसके धनी मोदी जी हैं और रही वह जनता जिसके लिए ये लोग अपना बलिदान दे गए उस जनता में वह कृतज्ञता नहीं और कुछ जनता का स्वार्थ जिसकी पूर्ति वह वर्तमान सरकार में देखती है और पुराने किए को भुला देती है, वैसे भी ये तो सर्वविदित है कि नीव का पत्थर कोई नहीं देखता सभी को कंगूरे की ईंट ही नज़र आती है.
           आज तो स्थिति ये है कि मोदी जी जो करते हैं वहीं विशेषण बन जाता है, जो आजतक किसी प्रधानमंत्री की हिम्मत नहीं हुई वह हिम्मत मोदी जी ने दिखाई, अनुच्छेद 370 व 35 A को हटाकर कश्मीर की जनता को स्वयं मोदी जी के अनुसार, आज़ादी दिलाई, पर सवाल ये है कि ये कैसी आज़ादी है जो कश्मीर की जनता को अनुच्छेद 370 से निकाल कर धारा 144 व सेना की छाया में खड़ा कर देती है, अगर मोदी जी वास्तव में एडवेंचर पसंद करते हैं तो एक बार वहां से धारा 144 हटाएं, सेना हटाएं व कर्फ्यू से कश्मीर को मुक्त कर जनता के बीच जाएं, अब साहसी प्रधानमंत्री मोदी जी का कश्मीर की जनता के प्रति इतना फर्ज़ तो बनता है.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कौशल)

गुरुवार, 1 अगस्त 2019

लड़के का हक़ - एक लघु कथा


''मम्मी ''मैं कॉलिज जा रही हूँ आप गेट बंद कर लेना ,कहकर सुगन्धा जैसे ही गेट से बाहर निकली कि शिशिर ने उसका रास्ता रोक लिया .....क्या भैय्या ,जल्दी है ,आपसे शाम को मिलती हूँ ,नहीं तू कहीं नहीं जा रही ,सड़कों का माहौल बहुत  ख़राब है और मैं जानता हूँ कि तू और तेरी सहेलियां भी कुछ लड़कों से बहुत परेशान हैं .अरे तो क्या हो गया ये तो चलता ही रहता है अब जाने दो ,आधा घंटा तो कॉलिज पहुँचने में लग ही जायेगा और फर्स्ट पीरियड ही अकडू प्रशांत सर का है अगर देर हुई तो वे सारे टाइम खड़ा ही रखेंगे .सुगन्धा ने भाई की मिन्नतें करते हुए कहा .
''नहीं तू कहीं नहीं जा रही ,''ये कह धमकाते हुए वह जैसे ही उसे घर के अन्दर ले जाने लगा कि पापा-मम्मी दोनों ही बाहर आ गए .क्या हुआ क्यों लड़ रहे हो तुम दोनों ?शिशिर ने पापा-मम्मी को सारी बात बता दी .
''ठीक ही तो कह रहा है शिशिर ,''चल सुगन्धा घर में चल हमें न करानी ऐसी पढाई  जिसमे  लड़की  की जिंदगी व् इज्ज़त और घर का मान सम्मान दोनों ही खतरे में पड़ जाएँ .चल .और बारहवी तो तूने कर ही ली है ,अब प्राइवेट पढले या फिर बस पेपर देने जाना ,वैसे भी कॉलिज में कौन सी पढाई होती है ,ये कह मम्मी सुगन्धा को अन्दर ले गयी और पापा बेटे की पीठ थपथपाते हुए बाइक पर ऑफिस  के लिए निकल गए .
शाम को मम्मी और सुगन्धा जब बाज़ार से लौट रही थी तो एकाएक सुगन्धा चिल्ला उठी ...मम्मी ....मम्मी ...देखो पापा बाइक पर किसी लेडी के साथ जा रहे हैं ..परेशान होते हुए भी मम्मी ने कहा -होगी कोई इनके ऑफिस से ....पर इन्हें देख कर तो ऐसा नहीं लगता ...सुगन्धा बोली ...चल घर चल ,ये कह मम्मी खींचते हुए उसे घर ले चली .
तभी एक मोड़ पर ...'''शिशिर मान जाओ ,आगे से अगर तुमने मुझे कुछ कहा तो मैं घर पर सभी को बता दूँगी और तब तुम्हें पिटने से कोई नहीं बचा पायेगा ,''एक लड़की चिल्ला चिल्ला कर शिशिर से कह रही थी ...देखो माँ भैय्या क्या कर रहा है और लड़कियों के साथ और मुझे और लड़कों से बचाने को घर बैठा दिया ,...सही किया उसने ....भाई है तेरा वो ...और वो क्या कर रहा है ....ये तो उसका हक़ है .....वो लड़का है ना ....मम्मी ने बात हँसी में उड़ाते हुए कहा. 
शालिनी कौशिक

बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

जैसा राजा वैसी प्रजा -अब तनाव कहाँ


     नया ज़माना आ गया है आज हम वी आई पी दौर में हैं ,पहले हमारे प्रधानमंत्री महोदय साल में बच्चों से मिलने का एक दिन रखते थे और आज प्रधानमंत्री हर वक़्त देश के बच्चों को उपलब्ध हैं और वह भी उन विषयों और समस्याओं के लिए जिसे समझाने व् सुलझाने का काम बच्चों का स्वयं का ,उनके शिक्षक का और उनके माता पिता का ही है ऐसा लगता है कि देश की समस्याएं अब ऊँचे स्तर से ख़त्म हो चली हैं और अब समस्याओं का स्तर नीचे आ गया है ,अब दौर आ गया है बच्चों को उनके पैरों पर खड़े कर काबिल बनाने का और यह जिम्मा समस्याओं की कमी में प्रधानमंत्री महोदय ने लिया है तभी तो एक छात्र प्रधानमंत्री जी से सवाल पूछ सकता है कि ''मोदी सर ,क्या आपको भी परीक्षा का तनाव हुआ था ?''
           विचारणीय स्थिति है कि वह समस्या जो बच्चे स्वयं साल भर पढाई कर सुलझा सकते हैं ,वह समस्या जो बच्चों के शिक्षक उन्हें पढ़ाकर और उनसे वार्तालाप कर मिनटों में हल कर सकते हैं और वह समस्या जो बच्चों के माँ-बाप उनके कैरियर को अपनी प्रतिष्ठा का विषय न बनाकर सैकिंडों में संभाल सकते हैं उसके लिए प्रधानमंत्री तक क्यों पहुंचा जा रहा है इसके जिम्मेदार सबसे पहले हमारे बच्चे हैं ,दूसरे नंबर पर शिक्षक और तीसरे नंबर पर हमारे माता पिता हैं क्योंकि आज के बच्चे पढाई को लेकर उतने गंभीर नहीं हैं जितना उन्हें होना चाहिए ,आज वे फेसबुक पर चैट और व्हाट्सप्प पर ग्रुप बनाने में ही ज्यादा मशगूल रहते हैं और परीक्षा के लिए केवल तभी सोचते हैं जब परीक्षा सर पर आ जाती है ,दूसरे रहे हमारे शिक्षक जिनके लिए पढ़ाना केवल एक व्यवसाय बनकर रह गया है ,शिक्षा के क्षेत्र में आज चंद नाम ही होंगे जो सेवा की सोचकर आते हों अधिकांश यहाँ केवल आकर्षक वेतन देखकर ही अपना कैरियर बनाते हैं और रहे हमारे माता-पिता जो खुद हासिल नहीं कर पाए वह अपने बच्चों से हासिल करने की तमन्ना और जो हासिल कर चुके उन्हें केवल अपनी प्रतिष्ठा बनाये रखने की तमन्ना उनके बच्चों की इच्छा को कोई स्थान  लेने ही नहीं देती और उनकी इच्छाओं को पूरा करने की चक्की में ही उन बच्चों को पीसकर रख देती है ,
     और अब रहे हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ,जिन्हें सोशल मीडिया पर छाने की इतनी खुमारी है कि उन्होंने लोगो की निजी ज़िंदगी में भी घुसना शुरू कर दिया है और ऐसा दिखा दिया है जैसे देश में और कोई समस्या अब रह ही नहीं गयी है ,हमें नहीं लगता कि इतनी छोटी छोटी बातों को लेकर प्रधानमंत्री को आम जनता से जुड़ना चाहिए ,आज देश में सी आर पी ऍफ़ कैम्प पर लश्कर के हमले हो रहे हैं हमारे फौजी शहीद हो रहे हैं ,रेल दुर्घटनाएं हो रही हैं शिपयार्ड विस्फोट हो रहे हैं ,अधिवक्ता वर्ग निरन्तर अपनी विभिन्न मांगों को लेकर सामने आ रहे हैं ,क्यों किसी मन की बात में माननीय प्रधानमंत्री ''पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच ''को लेकर भाजपा की नीति पर बात नहीं करते ? क्यों माननीय प्रधानमंत्री बरसों से भाजपा से राम मंदिर की आस लगाए बैठी जनता के सामने अपने मन की बात नहीं खोलते ?प्रधानमंत्री तीन तलाक का कहर ढो रही मुसलमान महिलाओं के उद्धार की कोशिश तो करते हैं पर क्यों प्रधानमंत्री अपने मन की बात में बरसों से बिना तलाक का कहर ढो रही ,सारी ज़िंदगी उनकी बाट जोह रही त्यक्ता के रूप में जीवन बिताने वाली जसोदा बेन के उद्धार की बात नहीं करते ?
     हमारे पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू बच्चों से मिलने का केवल एक दिन रखते थे उसके अलावा उन्हें वे वैसे मिल जाएँ तो भी उनके प्रति अपने वात्सल्य के लिए वे कुछ समय निकल लेते थे किन्तु जितना समय हमारे इन सोशल मीडिया पर प्रसिद्धि का चाह रखने वाले मोदी जी के पास है उतना समय उनके पास नहीं था क्योंकि उन्हें गुलामी के दंश से निकले अपने देश का नवनिर्माण करना था ,देश को विपरीत स्थितियों से जूझने के लिए तैयार करना था ,आज क्या है आज देश खड़ा हो चुका है अपने दम पर दुश्मनों को सबक सिखा सकता है ,नेहरू जी को आवश्यकता नहीं थी अपने को स्थापित करने के लिए दूसरों का नाम गिराने की जो आज के प्रधानमंत्री महोदय का पहला काम है ,वे अपने कामों से जनता के ह्रदय में स्थान रखते थे और उनके समय में विद्यार्थियों को जो शिक्षा मिलती थी वह ही उनके परीक्षा के तनाव को दूर करने के लिए पर्याप्त थी उन्हें इस तरह से तनाव दूर करने के लिए दूसरो के मन की थाह लेने की ज़रुरत नहीं पड़ती थी ,आज सभी को पता है कि अगर प्रधानमंत्री की नज़रों में उठना है तो जहाँ तक उनका प्रचार कर सकते हो करो ,इसीलिए आज पढाई नहीं कराई जाती ,टीवी पर प्रधानमंत्री से संवाद के इंतज़ाम कराये जाते हैं और ये सभी को पता है कि ''जैसा राजा वैसी प्रजा ''तो फिर जब प्रधानमंत्री जी अपने प्रचार को मन की बात कर सकते हैं तब उनकी प्रजा उनसे सवाल पूछ अपने मन की बात से खुद को प्रसिद्द क्यों नहीं कर सकती ? अब तनाव के लिए स्थान ही कहाँ ,जैसे प्रधानमंत्री जी ने अपने मन की बात से दूर कर लिया जनता भी वैसे कर ही लेगी ऐसे में पढाई को मारो गोली ,

शालिनी कौशिक
    [कौशल ]

रविवार, 4 फ़रवरी 2018

ऐसे थे हमारे बाबू जी

 

  बाबू हुकुम सिंह ,वह नाम जिससे कैराना को राष्ट्र स्तर पर वह पहचान मिली कि कैराना का निवासी इस पूरे विश्व में मात्र इतना ही कहते पहचाना जाने लगा कि वह कैराना का रहने वाला है .एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व जो बना ही देश के लिए कुछ करने को था ,क्या किया यह इनके क्षेत्र के निवासियों से पूछो जिनके अश्रु इस वक़्त थमने का नाम नहीं ले रहे हैं ,कोई क्षेत्र ऐसा नहीं जिसमे बाबू हुकुम सिंह ने अपनी धाक न जमाई हो और क्षेत्र का कोई काम ऐसा नहीं जिसे करने में उन्होंने अपनी दिलचस्पी न दिखाई हो और अपनी सक्रियता से उसे पूरा न किया हो .
      हुकम सिंह (5 अप्रैल 1 9 38 - 3 फरवरी 2018)  एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने उत्तर प्रदेश के कैराणा से संसद सदस्य के रूप में कार्य किया था।  वह भारतीय जनता पार्टी ( भाजपा ) के थे। वह 16 वीं लोकसभा के अध्यक्षों के पैनल के सदस्य थे, और जल संसाधन संबंधी स्थायी समिति के अध्यक्ष थे। श्री सिंह ने गुर्जर समुदाय (चौहान) से स्वागत किया। उन्हें पहले सात विधानों (1 9 74-77, 1 9 80-8 9, 1 99 6-2014) के लिए उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य के रूप में चुना गया था।  उन्होंने भाजपा और कांग्रेस दोनों के तहत उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में भी सेवा की है।
   इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून स्नातक, उन्होंने 1 9 63 में पीसीएस (जे) परीक्षा को मंजूरी दे दी। लेकिन न्यायिक अधिकारी बनने के बजाय, वह 1 9 62 भारत-चीन युद्ध के बाद सेना में एक कमीशन अधिकारी के रूप में शामिल हो गए। उन्होंने कश्मीर में पुंछ और राजौरी क्षेत्रों में एक कैप्टन के रूप में 1 9 65 के पाकिस्तान युद्ध में भाग लिया। उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और 1 9 6 9 में मुजफ्फरनगर में कानून का अभ्यास करना शुरू कर दिया।  1 9 74 में उन्होंने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया, कांग्रेस के टिकट पर पहली बार विधायक बन गया। उन्होंने विधानसभा चुनावों में सात बार जीत हासिल की और 1 9 83 से 1 9 85 तक विधानसभा के उप-अध्यक्ष पद का पद संभाला। उन्होंने 1 99 6 में भाजपा के उम्मीदवार के रूप में अपना चौथा, और 2014 में अपना पहला लोकसभा चुनाव जीता।
सितंबर 2013 में, मुजफ्फरनगर दंगों से संबंधित एफआईआर में उनका नाम रखा गया था क्योंकि वह महापंचायत में शामिल हुए थे जो कि निषेधाज्ञा के आदेश के बावजूद आयोजित किया गया था। उन्होंने सांप्रदायिक तनाव को उकसाने के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि उन्होंने कोई भड़काऊ भाषण नहीं किया और इकट्ठे भीड़ को शांत करने का प्रयास किया।  जून 2016 में, उन्होंने हिंदू परिवारों की एक सूची जारी की और आरोप लगाया कि कानून और व्यवस्था की स्थिति के कारण हिंदुओं के अपने निर्वाचन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पलायन किया गया था। बाद में उनका दावा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की एक रिपोर्ट के द्वारा मान्य किया गया।
किसान के पिता के पुत्र होने के नाते, उन्होंने खुद को किसानों, शिक्षा और बुनियादी ढांचे से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में समझा और चिंतित किया। उन्होंने राष्ट्रीय औसत की तुलना में और अधिक बहस में भाग लिया था और संसद में महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे ताकि उनके निर्वाचन क्षेत्र के लोगों को प्रभावित करने वाली समस्याओं पर ध्यान दिया जा सके।  जल संसाधन संबंधी स्थायी समिति के अध्यक्ष होने के अलावा, वह परामर्शदात्री समिति, गृह मंत्रालय और सामान्य प्रयोजन समिति के सदस्य भी शामिल हैं।[विकिपीडिया से साभार ]
     बाबू हुकुम सिंह कैराना बार के संरक्षक रहे और वो भी केवल नाममात्र के नहीं बल्कि वास्तव में क्योंकि उन्होंने कैराना बार के लिए बहुत कुछ किया ,बार एसोसिएशन कैराना के पूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय श्री कौशल प्रसाद एडवोकेट जी के अनुसार ''उत्तर प्रदेश शासन के पूर्व मंत्री व् वर्तमान में विधायक कैराना माननीय श्री हुकुम सिंह जी के प्रयासों द्वारा दिनांक 1 नवम्बर 2001 को कैराना में 2  फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना हुई थी और ऐसी कोर्ट वाला कैराना उस वक़्त प्रदेश में अकेला था ,यही नहीं बाबू हुकुम सिंह जी ने अपने ही प्रयासों से कैराना को विजय सिंह पथिक डिग्री कॉलेज की अमूल्य भेंट दी यह कैराना कांधला क्षेत्र के लड़को के लिए अमोल उपहार था क्योंकि लड़कियों के लिए तो कांधला में पहले से ही राजकीय डिग्री कॉलिज की सुविधा थी किन्तु लड़को को पढ़ने के लिए दूर दराज  के क्षेत्रो में जाना पड़ता था 
    बाबू हुकुम सिंह ने सम्पूर्ण क्षेत्र को अपने परिवार की तरह प्यार दिया और अपने परिवार में भी सर्व जन हिताय के बीज बोये, जहाँ एक तरफ आज बेटियों को लेकर लोगों में दुःख की भावना है वहीँ बाबू हुकुम सिंह के लिए उनकी बेटियां बेटों से भी बढ़कर थी ,उन्होंने अपने पांचों बेटियों की खुशियों को ही अपनी ख़ुशी माना और गुर्जर समाज जिससे वे ताल्लुक रखते थे और जो बेटियों को बेटो से निम्न स्थान ही देता है ,के होते हुए भी अपनी बेटी मृगांका सिंह को ही अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाया ,
     बाबू हुकुम सिंह जैसा दिलदार व्यक्ति राजनीति में मिलना मुश्किल है वे राजनीति में आने से पहले वकालत में आये थे और इसलिए सभी वकीलों को वे अपने भाई जैसा ही सम्मान देते थे और खास तौर से कैराना के निवासियों को और इसीलिए उन्होंने कैराना बार का संरक्षक बनना स्वीकार किया था और कैराना बार से उनका अटूट स्नेह था और खास तौर पर इसके पूर्व अध्यक्ष श्री कौशल प्रसाद जी से भी ,जिनके आमंत्रण को वे कभी भी ठुकराते नहीं थे और कैराना बार के हर उस समारोह में जो इनके कैराना आगमन के समय होता था पूरे ह्रदय से उपस्थित होते थे और ऊपर का चित्र इसकी गवाही देता है जिसमे पूर्व अध्यक्ष श्री कौशल प्रसाद जी ने जैसे ही उन्हें तिलक लगाया वैसे ही बढ़कर उन्होंने भी तिलक उनके लगा दिया ,
       बाबू हुकुम सिंह इस वक़्त कैराना कांधला से सांसद थे और क्षेत्र को ऐसा रहनुमा मिलना मुश्किल है जो सच्चे अर्थों में जननेता हो ,जनता की सेवा के लिए हर वक़्त उपस्थित होता हो ,केवल कहने के लिए ही बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ न कहता हो ,केवल कहने के लिए एक बेटी को दस के बराबर न कहता हो बल्कि वास्तव में बेटी को वही माननीय स्थान देता हो जिसकी वह हक़दार है और अहंकार से दूर ,जनहित की प्रतिमूर्ति बाबू हुकुम सिंह का जाना इस पूरे क्षेत्र की अपूरणीय क्षति है जिसे सदियां भी भरने में नाकाबिल हैं ,मन उनके लिए बस यही कहने को करता है -
''हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है ,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा ,''

शालिनी कौशिक
   [कौशल ]








शनिवार, 27 जनवरी 2018

मेरा वज़ूद ऐसा है ,

rg
मेरे दुश्मन को है खलता , मेरा वज़ूद ऐसा है ,
गिराने से नहीं गिरता , मेरा वज़ूद ऐसा है !
दिलों में बस गया है जो ,फकत इक नाम ऐसा है ,
मिटाने से नहीं मिटता , मेरा वज़ूद ऐसा है !
मैं आगे हूँ या पीछे हूँ मगर फोकस में मैं ही हूँ ,
हटाने से नहीं हटता , मेरा वज़ूद ऐसा है !
मेरे दिल में उमड़ता मुल्क से जो इश्क -ए-समंदर ,
घटाने से नहीं घटता , मेरा वज़ूद ऐसा है !
अगर तूफ़ान हो तुम , मैं भी हूं जलता हुआ दीपक ,
बुझाने से नहीं बुझता ,मेरा वज़ूद ऐसा है !
शिखा कौशिक 'नूतन'