शुक्रवार, 31 मई 2013

'आदमी शादी के बाद ...............न घर का न घाट का .............''


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''शादी करके फंस गया यार ,
    अच्छा खासा था कुंवारा .''
भले ही इस गाने को सुनकर हंसी आये किन्तु ये पंक्तियाँ आदमी की उस व्यथा का चित्रण करने को पर्याप्त हैं जो उसे शादी के बाद मिलती है .आज तक सभी शादी के बाद नारी के ही दुखों का रोना रोते आये हैं किन्तु क्या कभी गौर किया उस विपदा का जो आदमी के गले शादी के बाद पड़ती है .माँ और पत्नी के बीच फंसा पुरुष न रो सकता है और  न हंस सकता है .एक तरफ माँ होती है जो अपने हाथ से अपने बेटे की नकेल निकलने देना नहीं चाहती और एक तरफ पत्नी होती है जो अपने पति पर अपना एक छत्र राज्य चाहती है .
    आम तौर पर भी यह देखने में आया है कि लड़के की शादी को तब तक के लिए टाल दिया जाता है जब तक उसकी बहनों का ब्याह न हो जाये क्योंकि एक धारणा यह भी प्रबल है कि लड़का शादी के बाद पत्नी के काबू में हो जाता है और फिर वह घर का कुछ नहीं करता जबकि जब अपनी लड़की को ब्याहते हैं तो ये चाहते हैं कि लड़का अपनी पत्नी का मतलब उनकी बेटी का हर तरह से ख्याल रखे और उसे कोई भी कष्ट न होने दे ,किन्तु बहु के मामले में उनकी सोच दूसरे की बेटी होने के कारण परिवर्तित हो जाती है कोई या यूँ कहूं कि एक माँ जो कि सास भी होती है यह नहीं सोचती कि शादी के बाद उसकी अपनी भी एक गृहस्थी है और जिसके बहुत से दायित्व होते हैं जिन्हें पूरा करने का एकमात्र फ़र्ज़ उसी का होता है .
    और दूसरी ओर जो उसकी पत्नी आती है वह अपने भाई से तो यह चाहती है कि वह मम्मी पापा का पूरा ख्याल रखे और भाई की पत्नी अर्थात उसकी भाभी  भी मेरे मम्मी पापा को अपने मम्मी पापा की तरह समझें और उनकी सेवा सुश्रुषा में कोई कोताही न बरतें और स्वयं अपने सास ससुर को वह दर्जा नहीं दे पाती ,ऐसे में माँ और पत्नी की वर्चस्व की जंग में पिस्ता है आदमी ,जो करे तो बुरा और न करे तो बुरा ,जिसे भुगतते हुए उसे कहना ही पड़ता है -
        '' जब से हुई है शादी आंसूं  बहा रहा हूँ ,
          मुसीबत गले पड़ी है उसको निभा रहा हूँ .'' 
                   
                         शालिनी कौशिक 
                      [WOMAN ABOUT MAN]

रविवार, 19 मई 2013

बस यही कल्पना हर पुरुष मन की .



अधिकार 
सार्वभौमिक सत्ता 
सर्वत्र प्रभुत्व 
सदा विजय 
सबके द्वारा अनुमोदन 
मेरी अधीनता 
सब हो मात्र मेरा 

कर्तव्य 
गुलामी 
दायित्व ही दायित्व 
झुका शीश 
हो मात्र तुम्हारा 
मेरे हर अधीन का 

बस यही कल्पना 
हर पुरुष मन की .

शालिनी कौशिक 
   

सोमवार, 13 मई 2013

''कायर होता जा रहा है आदमी ''



दरिंदा है मनोज, अपनी पत्नी से भी किया था रेप   

'गुड़िया' खतरे से बाहर, आरोपी ने कबूला गुनाह   

 

झुलसाई ज़िन्दगी ही तेजाब फैंककर ,   

 

acp slapped girl in delhi

''कायर होता जा रहा है आदमी ''
दिल्ली में एक पञ्च वर्षीय बालिका से गैंगरेप ,शामली में चार सगी बहनों पर तेजाब उडेला ,मायके गयी पत्नी तो जल मरा ,महिला से छेड़खानी मारपीट ,रामपुर में अज़ीम नगर थाना क्षेत्र में सामूहिक दुष्कर्म के बदले सामूहिक दुष्कर्म ,मोदीनगर में कैथवादी में पानी भरने गयी छात्रा से छेड़छाड़ कपडे फाड़े आदि आदि आदि दिल दहल जाता है मन क्षुब्ध हो जाता है रोज रोज ये समाचार देखकर पढ़कर किन्तु नहीं रुक रहे हैं ये और नहीं मिल पा रहा है कोई समाधान  इन्हें रोकने का .पुरुष जो नारी को अपने से दोयम दर्जा समाज में ,इस सृष्टि में प्रदान करता है और उसके संरक्षण का दायित्व अपने ऊपर लेता है .वही पुरुष आज बात बात पर स्त्री पर हमले कभी यौनाचार ,कभी तेजाब उडेलना कभी मारपीट करना आदि के रूप में करने लगा है और वह भी उस देश में जहाँ नारी की पूजा की जाती है ,जहाँ कहा जाता है -
''यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते ,रमन्ते तत्र देवता .'' 
       विभिन्न धर्मग्रंथों में नारी का सम्मान ,सुरक्षा का दायित्व पुरुषों को दिया गया है -
-मनुस्मृति के ८/३४९ में कहा गया है -नारी और ब्राह्मण की रक्षा करने के लिए धर्मयुद्ध में किसी को मारना पड़े तो भी दोष नहीं होता है .
-नारी के सम्बन्ध में अन्य स्मृतियाँ कहती है -
         ''जो लोग नारी जाति  से घृणा करते हैं ,समझना चाहिए कि वे अपनी माता का ही अपमान करते हैं .जिस पर नारी की कोप दृष्टि है उस पर भगवान का भी अभिशाप लगा हुआ है .जिस दुष्ट के व्यवहार से नारी की आँखों से आंसू बहते हैं वह देवता के क्रोधानल से भस्म हो जाता है .जोव्यक्ति नारी के दुःख दर्द में उसकी हंसी उडाता हैं उसका अकल्याण होता है .ईश्वर  भी उसकी प्रार्थना नहीं सुनते . ''
 बचपन से युवावस्था हो या प्रौढ़ावस्था नारी सम्मान और संरक्षण संस्कारों के रूप में पुरुषों को पहनाया जाता है अनार्य और संस्कारों से दूर परिवारों का तो नहीं पता किन्तु सभ्य सुसंस्कृत परिवार अपने बच्चों को इसी तरह के आभूषणों  से विभूषित करते हैं और अपने परिवार के पुरुषों पर महिलाओं के सम्मान व् संरक्षण का भार सौंपते है .रक्षा बंधन का पर्व मनाया तो हिन्दू धर्मावलम्बियों द्वारा जाता है किन्तु उसके कच्चे धागे का मान मुसलमान भी रखते हैं .रानी पद्मावती की राखी पर हुमायूँ का आना सभी जानते हैं .नारी को परिवार की समाज की इज्ज़त माना जाता है और आज यही मान्यता नारी के जीवन के लिए खतरा बन चुकी है क्योंकि आदमी में जो प्रतिशोध की भावना है उसका शिकार नारी को ही होना पड़ रहा है .प्यार और वह भी एकतरफा अगर लड़की ने स्वीकार नहीं किया तो या तो उसे बलात्कार का शिकार होना पड़ता है या फिर तेजाब से झुलसना पड़ता है .
     छेड़खानी ,जिसका आमतौर पर सभी महिलाएं शिकार होती हैं चुपचाप सहना इसे अपनी नियति मान रहती हैं किन्तु यदि कोई इसका शेरनी बन प्रतिरोध कर देती है तो इससे भी पुरुष के पौरुष को चोट पहुँचती है जबकि वह जानता है कि वह गलत कर रहा है तब भी यह नहीं सोच पाता कि ज़रूरी नहीं है कि आज की नारी भी बरसों से चुपचाप रहने वाली कोई गुडिया नहीं होगी और जब वह नारी का शेरनी रूप देखता है तो जो ढंग वह उससे निबटने के लिए आजमा रहा है वे उसकी कायरता की ही गवाही दे रहे हैं .वह अपने गलत काम के लिए माफ़ी नहीं मांग रहा ,शर्मिंदा नहीं हो रहा बल्कि महिला के साथ मारपीट को उतारू हो रहा है और इस श्रेणी में वह किसी भी महिला की उम्र का अंतर नहीं कर रहा है उसका यह व्यवहार चाहे दो साल की मासूम हो या ६० साल की वृद्धा सबके साथ ही नज़र आ रहा है .पहले जहाँ  महिलाओं के ,लड़कियों के अपहरण की घटनाएँ न के बराबर ही सुनने में आती थी ,आज निरंतर बढती जा रही हैं .पहले जहाँ लोगों के आपसी झगड़ों में महिलाओं को , लड़कियों को एक तरफ कर दिया जाता था आज बर्बरता का शिकार बनाया जा रहा है .
    प्रतिशोध की भावना में झुलसता आदमी ,हार का दंश झेलता आदमी आज इतना गिर गया है कि प्राकृतिक रूप से ताकत में अपने से कमजोर बनायीं गयी नारी पर ज़ुल्म करने पर आमादा हो गया है .
    लड़कियां परिवार  की इज्ज़त होती हैं ,लड़कियां शरीर से कोमल होती हैं ,लड़कियां मेहनती होती हैं ,वे पराया धन होती हैं ,परिवार में सबकी प्रिय होती हैं आदि आदि आदि सभी बातें आज उनके खिलाफ ही जा रही हैं .किसी परिवार की इज्ज़त ख़राब करनी हो तो उसकी बहु बेटी से बलात्कार करो ,किसी लड़की ने यदि एकतरफा प्यार का प्रस्ताव ठुकरा दिया तो उसे उसके सौंदर्य का घमंड मान तेजाब से झुलसा देना आज आम प्रतिक्रिया हो गयी है किसी को समाज में मुहं दिखने के काबिल न छोड़ना हो तो उसके साथ दुष्कर्म करो ,काम वासना को पूरी करना हो तो लड़की के साथ हैवानियत करो और यदि वह न मिल पाए तो ऐसे में ये कायर पुरुष आज छोटे मासूम लड़कों को भी शिकार बनाने से नहीं चूक  रहे हैं .अपनी एक से बढ़कर एक कुत्सित इच्छाओं को पूरी करने के लिए ये कुछ भी कर सकते हैं और इस सबके बाद अपनी पहचान छिपाने के लिए अपने शिकार की हत्या और सभी कुछ इतना आसान कि क्या कहने ?लड़की में इतने बलशाली पुरुषों ,हैवान जानवरों का सामना करने की हिम्मत ही कहाँ ?वह तो इस सबके बाद भी दोषी न केवल समाज की नज़रों में बल्कि अपनी स्वयं की नज़रों में और इसका परिणाम भी आज दिखाई दे रहा है लड़कियां स्वयं को मौत के हवाले कर रही हैं ,कहीं तेजाब पी कर तो कहीं आग में झुलस कर .
    लड़कियों की तो नियति पुरुषों ने यही बना दी है जिसके कारन कन्या भ्रूण हत्या तक को लोग अंजाम देते हैं क्योंकि ऐसी घटनाएँ देख हर किसी में हिम्मत नहीं है कि वह लड़कियों को पैदा होते देख सके नहीं दे सकते वे अपने लड़के को ऐसे संस्कार जिनसे ऐसी घटनाएँ घटित ही न हों और परिणाम स्वरुप पुरुषों का परचम लहराता रहता है ,अभिमान बढ़ता जाता है और आज यही अभिमान है जो हैवानियत में तब्दील हो गया है और पुरुष को कायरता की ओर बढ़ा रहा है .
      शालिनी कौशिक
 [woman about man ]

गुरुवार, 9 मई 2013

अनमोल पल - शांति पुरोहित


  अनमोल पल                                                                                                                                                 आज उर्मि अपने अतीत की खट्टी- मीठी यादो मे खोई हुई है,'उमेश ऑफिस चला गया वो  बैठ गयी | सोच रही है कि कालेज के कितने सुहावने दिन थे कितनी मस्ती करते थे |                  
                       कालेज मे उसके बहुत सारे दोस्त थे,  सब दोस्त सैर करने जाया करते थे | उर्मि गाना बहुत अच्छा गाती थी ये उन सब को पता था | कालेज के हर उत्सव मे उर्मि गाती थी | जब भी वो  लोग पिकनिक जाते तो सब दोस्त उर्मि से गाना जरुर गवाते थे |
                          कालेज का कोई भी उत्सव उसके गाने के बगैर समाप्त नहीं होता था | वैसे तो सबको उसका गाना पसंद था पर एक लड़का जिसका नाम तक वो  नहीं जानती क्योंकि वो सीनियर स्टूडेंट जो था | उसे उर्मि का  गाना- गाना बहुत पसंद था | उर्मि के किसी भी प्रोग्राम को छोड़ता नहीं बस | उर्मि को  उसके बारे मे कुछ जानने की इच्छा हुई | उसने वंशिका से उसके बारे पता किया वो उसकी क्लास मे पढ़ती थी |
                            कालेज में सबने कहना शुरू कर दिया कि उमेश तुम्हे कितने ध्यान से सुनता है हमे तो लगता है ये उमेश जल्दी ही तुम्हे शादी के लिये प्रपोज करेगा | उर्मि उन सब को हलके से डांट देती थी | वैसे तो कभी उमेश ने बात नहीं की पर उस दिन कालेज का वार्षिक उत्सव था,उर्मि गाने की आखिरी बार रिहर्सल कर  रही थी कि तभी उमेश वहां आया और कहा''समय मिलते ही मुझसे पास के कॉफ़ी हाउस मे मिलना |, उमेश का इस तरह से अचानक कॉफ़ी हाउस मे बुलाना थोडा अजीब लगा | पर उसने जाने का तय किया \
                           कॉफ़ी हाउस मे उमेश पहले से ही बैठा था | उर्मि भी बैठ गयी | कुछ देर की चुपी तोड़ते हुए उमेश ने कहा ''उर्मि तुम बहुत अच्छी गायिका हो |'
'' धन्यवाद , मैंने कहा
'' क्या मै तुमसे दोस्ती कर सकता हूँ ?'
'' हाँ, क्यों नहीं ? उसने कहा |
 वो थोडा सहज हुआ ''मेरा नाम उर्मि है.....''..जानता हूँ , वो बोला ''इसी कालेज मे हूँ नाम तो सब को पता होगा ही  अब उर्मि और उमेश रोज ही मिलने लगे | अब उमेश नोट्स बनाने मे भी उर्मि की मदद कर देता था समय बीतता गया दोस्ती ने जब प्यार का रूप लेना शुरू किया तो उर्मि को लगा ये ठीक नहीं होगा | उमेश और उर्मि की आर्थिक परिस्थिती मे रात दिन का अंतर था वो अमीर बाप का बेटा और उर्मि गरीब बाप की बेटी | शादी अपने से बराबर वाले के साथ ही की जानी चाहिये |
                        एक दिन उमेश ने आकर कहा ''उर्मि ,मै तुमसे शादी करना चाहता हूँ ,उर्मि कुछ तय नहीं कर पारही थी | उसने फिर कहा ''क्या तुम नहीं चाहती ?''उर्मि ने ना बोला '' उर्मि गरीब बाप की बेटी थी  तो उमेश के माँ -पापा शायद उर्मि को पसंद ना करे | '' तुम मुझे पसंद हो,तुम्हारा गाना -गाना मुझे पसंद है |माँ -पापा को मै राजी कर ही लूँगा |उर्मि खुद भी उससे शादी करना चाहती पर कुछ तय नहीं कर पा रही थी |अब उर्मि चुप -चुप सी रहने लगी |एक बार वंशिका ने कहा ''उर्मि तुम्हे आजकल क्या हो गया तेरी सारी मस्ती कहाँ गायब हो गयी ?''
                         उर्मि ने अपने और उमेश के बारे मे सब कुछ वंशिका को बताया उसने उर्मी से कहा तुम्हारा
 मन जो कहता है वो करो और किसी की चिंता मत करो |आज उमेश उर्मि को पूछ रहा था कि उर्मि क्या सोचा तुमने तो उर्मि हंस कर वहां से भाग गयी |अब परीक्षा नजदीक थी उर्मि और उमेश तैयारी मे लग गये थे |
                         कालेज की छुट्टियों मे उर्मि और उमेश की शादी उमेश की माँ की मर्जी के खिलाफ हो गयी |उमेश की माँ को उर्मि पसंद नहीं थी वो अपने बेटे की शादी किसी अमीर घराने की लड़की से करना चाहती थी तो जाहिर सी बात है उनका उर्मि के साथ अच्छा व्यवहार तो नहीं हो सकता था बात -बात पर उर्मि को उसकी गरीबी का एहसास कराया जाता था, उमेश बहुत अच्छे थे पर माँ को कुछ नहीं कहते,|
                       एक बार तो सासूजी ने सारी हद पार करते हुए जो ताना दिया उर्मि को की वो चुप सी हो गयी उर्मि को अब गाना तो दूर की बात किसी से बात करना भी अच्छा नहीं लगता था | उमेश ने कई बार पूछा भी ''उर्मि तुमने गाना क्यों छोड़ दिया,कितनी अच्छी गायिका थी तुम जब तुम शादी करके आई? उर्मि बस उन्हें देखती रहती थी |  उसकी माँ के बारे मे बता कर माँ-बेटे मे दुरी पैदा नहीं करना चाहती थी |
                   एक दिन सासुजी ने उमेश को कहा ''उर्मि को नीचे लेकर आओ,मंदिर चलना है | उर्मि आई और वो  सब गाड़ी मे बैठ गये |उर्मि ने कुछ नहीं पूछा कि हम कहाँ जा रहे है किसी ने कहा होगा की मंदिर ले जाने से ठीक होगा | उमेश सारे रास्ते मेरे बारे मे सोचते रहे कि क्या हुआ है उर्मि को गाना तो दूर बोलती भी नहीं किसी से |
                    अचानक गाड़ी मनोरोग चिकित्सक के अस्पताल के आगे रुकि उर्मि समझ गयी कि उन्होंने उसे पागल समझ के रखा है |दोनों माँ-बेटे बाहर बैठ गये उर्मि डाक्टर के पास चली गयी | करीब दो घंटे बाद बाहर आई,डाक्टर ने उमेश और माँ को कुछ भी बताने से मना किया था | अब माँ-बेटे के समझ नहीं आ रहा था कि डॉ.और उर्मि के बीच क्या बाते हुई होगी |
                    रास्ते मे एक दुकान आई उर्मि ने कहा''जरा गाड़ी रोको,वो दुकान से एक डायरी खरीद कर लायी और कहा ''डॉ.ने कहा कि जो भी दिमाग मे आए वो इस डायरी मे लिखना | उमेश को अच्छा लगा पर सासुजी बडबडाई '' डायरी लिखने के लिये डॉ . के पास आने का इतना खर्चा किया ? उमेश ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रखकर कहा ''तुम लिखना, रात को उर्मि तीन बजे तक लिखती रही | इस दौरान उमेश दो बार उठा उसे जगी हुई देख कर वापस सो गया | चार बजे उर्मि सो गयी तब उमेश फिर उठा और डायरी पढने लगा |''गरीब के घर मे पैदा होना गुनाह है,ये मैंने तब जाना जब मेरी सासुजी ने मझसे कहा कि ''तुम्हारे माता-पिता के पास पैसा नहीं था ,वे मुझसे गाना गवा कर कमाई करते थे | मेरा गाना उनकी कमाई का जरिया था | उनकी इस बात से मुझे बहुत टीस पहुंची और मैं खामोश हो गयी | मेरी कला का इतना अपमान ये मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ और उसी दिन से मैंने गाना छोड़ दिया | उमेश बहुत अच्छे थे पर माँ को कुछ नहीं कहते तो मझे उन पर गुस्सा आता था |
                         ये सब पढ़ कर उमेश की आँखों मे आंसू आ गये मे उर्मि को समझ ही नहीं पाया | दुसरे दिन उर्मि दवाई लेने के बाद घर के काम में लग गयी | सारे काम खत्म करके अपने कमरे मे उदास होकर लेट गयी अपनी आज की दशा पर सोचने लगी,तभी उमेश का फोन आया कि'' उर्मि, आज हम दोनों बाहरगाँव घुमने चलेंगे|ये सुनकर उर्मि ख़ुशी से रोने लगी|  शाम को उमेश ने'' माँ को कहा ''मै और उर्मि दो माह के लिये घुमने जा रहे है,आप छोटे भाई -भाभी को बुला लेना या उनके पास चली जाना |
                        मुझे उर्मि को गायिका बना कर ही लाना है | मैंने गाने की वजह से ही इसे चुना था और मेरी वजह से ही इसका गाना बंद हुआ जो अब मुझे इसे वापस देना है उर्मि की आँखों मे आंसू छलकने लगे| क्योंकि ये उसके जीवन के अनमोल पल थे |
                 
             शांति पुरोहित