सोमवार, 29 जुलाई 2013

फरेब लिए मुहं से मिलें हाथ जोड़कर ,

 
.फरेब लिए मुहं से मिलें हाथ जोड़कर ,

  नुमाइंदगी करते हैं वे जनाब आली ,

जजमान बने फिरते हैं वे जनाब आली .
...............................................................
देते हैं जख्म हमें रुख बदल-बदल ,
छिड़कते फिर नमक हैं वे जनाब आली .
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मुखालिफों को हक़ नहीं मुहं खोलने का है ,
जटल काफिये उड़ाते हैं वे जनाब आली .
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ज़म्हूर को कहते जो जनावर जूनून में ,
फिर बात से पलटते हैं वे जनाब आली .
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फरेब लिए मुहं से मिलें हाथ जोड़कर ,
पीछे से वार करते हैं वे जनाब आली .
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मैदान-ए-जंग में आते हैं ऐयार बनके ये ,
ठोकर बड़ों के मारते हैं वे जनाब आली .
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जम्हूरियत है दागदार इनसे ही ''शालिनी ''
झुंझलाके क़त्ल करते हैं वे जनाब आली .
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                      शालिनी कौशिक 
                               [कौशल ]

शब्दार्थ -नुमाइंदगी-प्रतिनिधित्व ,जनाब आली -मान्य महोदय ,जजमान-यजमान ,जटल काफिये उड़ाना-बेतुकी व् झूठी  बाते करना ,जम्हूर-जनसमूह ,जम्हूरियत-लोकतंत्र .

बुधवार, 24 जुलाई 2013

चढ़ते वे कैसे ऊपर ,जब बेंत ले पड़ी हो .


Arabian couple relaxing & drinking tea Royalty Free Stock PhotoArabian couple relaxing & drinking tea Stock Images
Arabian couple relaxing & drinking tea Stock Photography

क्यूँ खामखाह में ख़ाला,खारिश किये पड़ी हो ,
खादिम है तेरा खाविंद ,क्यूँ सिर चढ़े पड़ी हो .
 …………………………
ख़ातून की खातिर जो ,खामोश हर घड़ी में ,
खब्ती हो इस तरह से ,ये लट्ठ लिए पड़ी हो .
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खिज़ाब लगा दिखते,खालू यूँ नौजवाँ से ,
खरखशा जवानी का ,किस्सा लिए पड़ी हो .
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करते हैं खिदमतें वे ,दिन-रात लग तुम्हारी ,
फिर क्यूँ न मुस्कुराने की, जिद किये पड़ी हो .
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करते खुशामदें हैं ,खुतबा पढ़ें तुम्हारी ,
खुशहाली में अपनी क्यूँ,खंजर दिए पड़ी हो .
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खिलवत से दूर रहकर ,खिलक़त को बढ़के देखो ,
क्यूँ खैरियत की अपनी ,खिल्ली किये पड़ी हो .
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ऐसे खाहाँ की खातिर ,रोज़े ये दुनिया रखती ,
पर खामख्याली में तुम ,खिसियाये हुए पड़ी हो .
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खुद-इख़्तियार रखते ,खुसिया बरदार हैं फिर भी ,
खूबी को भूल उनकी ,खटपट किये पड़ी हो .
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क्या जानती नहीं हो ,मजबूरी खुद खसम की ,
क्यूँ सारी दुख्तरों को ,सौतन किये पड़ी हो .
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''शालिनी '' कहे खाला,खालू की कुछ तो सोचो ,
चढ़ते वे कैसे ऊपर ,जब बेंत ले पड़ी हो .
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                             शालिनी कौशिक
                                [WOMAN ABOUT MAN]

               
शब्दार्थ :-खाविंद-पति ,खातून-पत्नी ,खाला-मौसी ,खालू-मौसा खारिश -खुजली ,खुसिया बरदार -सभी तरह की सेवा करके खुश रखने वाला ,खर खशा-व्यर्थ का झगडा ,खाहाँ-चाहने वाला ,खिलवत -एकांत ,खिलक़त-प्रकृति ,खामख्याली -नासमझी


शुक्रवार, 12 जुलाई 2013

ये जिंदा थे ,जिंदा हैं और जिंदा रहेंगे .


चले आज वे महज़ देह छोड़कर ,
नज़र सामने न कभी आयेंगे .
अगर देखें शीश उठाकर सभी ,
गगन में खड़े वे चमक जायेंगे .

                      शरीरों का साथ भी क्या साथ है ?
                       है चलती ही रहती मिलन व् जुदाई .
                       जो मिलते हैं अपनी आत्मा से हमें 
                      न मध्य में आती किसी से विदाई .

ये फ़िल्मी सितारे अज़र  हैं अमर हैं 
हमारे ख्वाबों में रोज़ आया करेंगे .
भले भूल जाएँ हमको हमारे ही अपने 
ये सबके दिलों पर छाये रहेंगे .

                      जो पैदा हुए हैं सभी वे मरेंगे ,
                       जो आये यहाँ पर सभी चल पड़ेंगे .
                       है इनकी कला का ये जादू सभी पर 
                       ये जिंदा थे ,जिंदा हैं और जिंदा रहेंगे .


अभिनेता प्राण को भावपूर्ण श्रृद्धांजलि 
                                   शालिनी  कौशिक 

रविवार, 7 जुलाई 2013

हर दौर पर उम्र में कैसर हैं मर्द सारे ,

Picture of Medieval King of England in the Middle Ages

हर दौर पर उम्र में कैसर हैं मर्द सारे ,
गुलाम हर किसी को समझें हैं मर्द सारे .
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बेटे का जन्म माथा माँ-बाप का उठाये ,
वारिस की जगह पूरी करते हैं मर्द सारे.
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ख़िताब पाए औरत शरीक-ए-हयात का ,
ठाकुर ये खुद ही बनते फिरते हैं मर्द सारे .
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रुतबा है उसी कुल का बेटे भरे हैं जिसमे ,
जिस घर में बसे बेटी मुल्ज़िम हैं मर्द सारे .
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लड़की जो बढे आगे रट्टू का मिले ओहदा ,
दिमाग खुद में ज्यादा माने हैं मर्द सारे .
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जिस काम में भी देखें बढ़ते ये जग में औरत ,
मिलकर ये बाधा उसमे डाले हैं मर्द सारे .
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मिलती जो रियायत है औरत को हुकूमत से ,
जरिया बनाके उसको लेते हैं मर्द सारे .
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आरामतलब जीवन औरत के दम पे पायें ,
आसूदा न दो घड़ियाँ देते हैं मर्द सारे .
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पाए जो बुलंदी वो इनाने-सल्तनत में ,
इमदाद-ए-आशनाई कहते हैं मर्द सारे .
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बाज़ार-ए-गुलामों से खरीदकर हैं लाते ,
इल्ज़ाम-ए-बदचलन उसे देते हैं मर्द सारे.
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मेहर न मिले मन का तो मारते जलाकर ,
खुद पे हुए ज़ुल्मों को रोते हैं मर्द सारे .
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हालात ''शालिनी''ही क्या -क्या बताये तुमको ,
देखो इन्हें पलटकर कैसे हैं मर्द सारे .
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शब्दार्थ:-ठाकुर -परमेश्वर ,कैसर-सम्राट ,आशनाई-प्रेम दोस्ती ,इमदाद -मदद ,आसूदा-निश्चित और सुखी ,इमदाद-ए-सल्तनत -शासन सूत्र .

              शालिनी कौशिक 
                    [कौशल ]


गुरुवार, 4 जुलाई 2013

लड़कों को क्या पता -घर कैसे बनता है ...

लड़कों को क्या पता -घर कैसे बनता है ...
Reckless : Cheerful member of societyReckless : a chef play with the knife Stock PhotoReckless : High-risk business, such as tightrope
एक समाचार -कैप्टेन ने फांसी लगाकर जान दी ,.
बरेली में तैनात २६ वर्षीय वरुण वत्स ,जिनकी पिछले वर्ष २८ जून को एच.सी.एल .कंपनी में सोफ्टवेयर  इंजीनियर रुपाली से शादी हुई थी ,ने घटना के कुछ देर पहले ही गुडगाँव में रह रही पत्नी से फोन पर बात की थी जिसमे दोनों के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो गया था और समाचार के मुताबिक नौकरी के कारण पति को समय न दे पाने के कारण दोनों में अक्सर विवाद होता था .
   ये स्थिति आज केवल एक घर में नहीं है वरन आज आधुनिकता की होड़ में लगे अधिकांश परिवारों में यही स्थिति देखने को मिलेगी .विवाह करते वक़्त लड़कों के लिए प्राथमिकता में वही लड़कियां हैं जो सर्विस करती हैं .यही नहीं एक तरह से आज लड़कियों के स्थान पर उन्हें पत्नी के रूप में एक मशीन चाहिए जो उनके निर्देशानुसार कार्य करती रहे ,अर्थात पहले सुबह को घर के काम निबटाये ,फिर अपने ऑफिस जाये नौकरी करे और फिर घर आकर भी सारे काम करे .बिल्कुल वैसे ही जैसे कोई मशीन करती है .अब ऐसे में यदि कोई पति पत्नी से अलग से अपने लिए भी समय चाहता है तो उसकी यह उम्मीद तो बेमानी ही कही जाएगी .
  आरम्भ से लेकर आज तक महिलाओं के घर के कामों को कोई तरजीह नहीं दे गयी उनके लिए तो यही समझा जाता है कि वे तो यूँ ही हो जाते हैं .हमेशा बाहर जाकर अपनी मेहनत को ही पुरुषों ने महत्व दिया है और इसी का नतीजा है कि आज घर धर्मशाला बनकर रह गए हैं पुरुषों के रंग में रंगी नारियां भी आज काम नहीं वे भी अब वही सब कुछ करना चाहती है जो किसी भी तरह से पुरुषों को उनके सामने नीचा दिखा सके और घर इसलिये वे यहाँ भी पुरुषों के हाथ की कठपुतली ही बनकर रह गयी हैं और इसी विचारधारा के कारण घर ऐसे धर्मशाला बन गए हैं जहाँ दोनों ही कुछ समय बिताते हैं और फिर अपने गंतव्य की ओर मतलब ऑफिस की ओर चल देते हैं और इसका जो दुष्प्रभाव पड़ता है वह नारी पर ही पड़ता है क्योंकि घर तो उसका कार्यक्षेत्र माना जाता है और माना जाता रहेगा और ऐसे में यदि घर में कोई नागवार स्थिति आती है तो दोष उसी नारी के मत्थे मढ़ा जाता रहेगा  और उस पर तुर्रा ये कि आज महंगाई इतनी ज्यादा हो गयी है कि दोनों के काम करने पर ही घर चल सकता है ,मुझे तो नहीं लगता क्योंकि इस तरह से नारी के सौन्दर्य प्रसाधन और छोटे छोटे  बहुत  से व्यर्थ  के खर्चे  भी इसमें  जुड़ जाते हैं और घर की अर्थव्यवस्था वही डांवाडोल बनी रहती है किन्तु मेरी सोच को कौन देखता है देखते हैं नारी सशक्तिकरण जिसका फायदा आज भी पुरुष ही उठा रहा है और नारी को स्वतंत्रता के नाम पर बैलों की तरह जोत रहा है .
   पहले पति कमाकर लाता  था और पत्नी घर संभालती थी किन्तु आज दोनों को घर से जाने की जल्दी जिसमे पिसती है औरत ,जिसके काम के घंटे कभी कभी तो १८ भी हो जाते हैं और इस स्थिति के कारण बच्चों को जो लापरवाही झेलनी पड़ती है और उन्हें जो कुछ भी करने की आज़ादी मिल जाती है वह अलग ,घर में कोई होता ही नहीं जो देखे कि बच्चा किस दिशा में जा रहा है .वे पैसे से सब कुछ खरीदकर बच्चों के लिए सुख सुविधा का तमाम सामान जुटा देते हैं किन्तु जो सबसे ज़रूरी है वही नहीं दे पाते ,वह प्यार ,जो उन्हें जीवन के रणक्षेत्र में आगे बढ़ने को प्रेरित करता है ,वह स्नेह ,जो उन्हें देता है वह ताकत जिससे वे कड़े संघर्ष के बाद भी सफलता हासिल करते हैं ,वह समझ ,जो उनमे भरता  है आत्मविश्वास और ये सब नहीं कर पाते हैं इसलिये होते हैं  आरुषि जैसे  कांड .
   आज ये बदलती हुई प्राथमिकताओं का ही असर है कि शादी के वक़्त तो लड़की सुन्दर हो ,पढ़ी लिखी हो ,गृह्कार्यदक्ष हो नौकरी करती हो,देखा जाता है तब तो ऐसी कोई प्राथमिकता नहीं होती कि वह पति को समय भी दे और शादी के बाद ये भी जुड़ जाती है और फलस्वरूप होते हैं वरुण वत्स जैसे दुखद हादसे जिसके एक मात्र जिम्मेदार आज के युवा ही हैं ,लड़के ही हैं जिन्हें अपने स्टेटस के लिए लड़की चाहिए ''जॉब वाली ''क्योंकि वे नहीं जानते कि घर कैसे बनता है .
             शालिनी कौशिक
  [WOMAN ABOUT MAN ]

मंगलवार, 2 जुलाई 2013

अन्याय एक लघु कथा

          अन्याय एक लघु कथा                       सुश्री शांति पुरोहित की कहानी                                                                                                                                                ''मम्मी आप क्यों उस आदमी के लिए इतना कठोर व्रत रख रही हो, वो तो कभी आपको भूले से भी याद नहीं करते है| हम दोनों को उनके रहते,लावारिस जीवन जीने को मजबुर होना पड़ा|' रवि ने अपनी माँ शारदा से थोडा झुंझलाहट के साथ कहा| आज आरती ने करवा चौथ का व्रत अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखा है|
                                   शारदा अपने सास-ससुर जी और पति विष्णु के साथ रहती थी| सास- ससुर आरती को बेटी से बढकर प्यार करते थे| सुबह से शाम तक आरती उनका बहुत अच्छे से ख्याल रखती थी| अभी आरती की शादी को कुछ महीने ही हुए थे| एक दिन विष्णु बाहर बगीचे मे टहल रहा था| उसका फ़ोन कमरे मे बज रहा था| शारदा ने फोन उठा लिया| सामने से किसी महिला की आवाज आई '' उसकी आवाज सुनकर उसने फोन कट कर दिया|' शारदा ने इस बात को कभी गभीरता से नहीं लिया|
                         समय बीतता रहा| शादी के एक साल बाद शारदा एक बच्चे की माँ बनी| बहुत खुश थी अपनी दुनिया मे; तभी एक दिन विष्णु के एक फैसले ने उसके हँसते-खेलते जीवन में आग लगा दी| 'शारदा मैंने तुमसे और माँ-पापा से एक बात छुपाई है| मेरी नीलू से एक साल पहले, शादी हो चूकि है| हम दोनों एक दुसरे से प्यार करते थे| वो दुबई मे रहती है| कुछ दिन बाद मे उसके साथ रहने के लिए जा रहा हूँ| तुम अपना फैसला लेने के लिए स्वतंत्र हो; हमारे बेटे के साथ यहाँ रहकर, मेरे माँ-पापा के साथ रहकर भी अपना जीवन गुजार सकती हो|' विष्णु की एक-एक बात उसे जहर से भी ज्यादा कडवी लग रही थी|
                                शारदा ने रोते हुए कहा '' मेरे साथ ऐसा अन्याय करते हुए एक बार भी आपने नहीं सोचा कि आप मुझे बिना कोई कुसूर के इतनी बड़ी सजा दे रहे हो| पर कोई बात नहीं जब सोच लिया है तो जाओ, मेरे बारे मे तुम क्या सोचोगे,तुम्हे तो अपने जन्म देने वाले माँ-पापा की भी कोई परवाह नहीं है| जब उनको तुम्हारे इस फैसले का पता चलेगा तो वो भी मेरी तरह टूट जायेगे| इसलिए तुम उनको बिना कुछ कहे यहाँ से चले जाओ;उनको मे संभाल लूगी|' शारदा ने रोना उचित नहीं समझा और फिर वो सास-ससुर को इस बात की भनक भी नहीं पड़ने देना चाहती थी| तब से लेकर आज तक वो सास-ससुरजी का सहारा बनी बैठी है,जो खुद भी एक बेसहारा है| रवि ने छोटी उम्र से ही बड़े की तरह अपनी माँ को संभाला है|
                        शांति पुरोहित 

लड़कों को क्या पता -घर कैसे बनता है ...

लड़कों को क्या पता -घर कैसे बनता है ...
Reckless : Cheerful member of societyReckless : a chef play with the knife Stock PhotoReckless : High-risk business, such as tightrope 
एक समाचार -कैप्टेन ने फांसी लगाकर जान दी ,.
बरेली में तैनात २६ वर्षीय वरुण वत्स ,जिनकी पिछले वर्ष २८ जून को एच.सी.एल .कंपनी में सोफ्टवेयर  इंजीनियर रुपाली से शादी हुई थी ,ने घटना के कुछ देर पहले ही गुडगाँव में रह रही पत्नी से फोन पर बात की थी जिसमे दोनों के बीच किसी बात को लेकर विवाद हो गया था और समाचार के मुताबिक नौकरी के कारण पति को समय न दे पाने के कारण दोनों में अक्सर विवाद होता था .
   ये स्थिति आज केवल एक घर में नहीं है वरन आज आधुनिकता की होड़ में लगे अधिकांश परिवारों में यही स्थिति देखने को मिलेगी .विवाह करते वक़्त लड़कों के लिए प्राथमिकता में वही लड़कियां हैं जो सर्विस करती हैं .यही नहीं एक तरह से आज लड़कियों के स्थान पर उन्हें पत्नी के रूप में एक मशीन चाहिए जो उनके निर्देशानुसार कार्य करती रहे ,अर्थात पहले सुबह को घर के काम निबटाये ,फिर अपने ऑफिस जाये नौकरी करे और फिर घर आकर भी सारे काम करे .बिल्कुल वैसे ही जैसे कोई मशीन करती है .अब ऐसे में यदि कोई पति पत्नी से अलग से अपने लिए भी समय चाहता है तो उसकी यह उम्मीद तो बेमानी ही कही जाएगी .
  आरम्भ से लेकर आज तक महिलाओं के घर के कामों को कोई तरजीह नहीं दे गयी उनके लिए तो यही समझा जाता है कि वे तो यूँ ही हो जाते हैं .हमेशा बाहर जाकर अपनी मेहनत को ही पुरुषों ने महत्व दिया है और इसी का नतीजा है कि आज घर धर्मशाला बनकर रह गए हैं पुरुषों के रंग में रंगी नारियां भी आज काम नहीं वे भी अब वही सब कुछ करना चाहती है जो किसी भी तरह से पुरुषों को उनके सामने नीचा दिखा सके और घर इसलिये वे यहाँ भी पुरुषों के हाथ की कठपुतली ही बनकर रह गयी हैं और इसी विचारधारा के कारण घर ऐसे धर्मशाला बन गए हैं जहाँ दोनों ही कुछ समय बिताते हैं और फिर अपने गंतव्य की ओर मतलब ऑफिस की ओर चल देते हैं और इसका जो दुष्प्रभाव पड़ता है वह नारी पर ही पड़ता है क्योंकि घर तो उसका कार्यक्षेत्र माना जाता है और माना जाता रहेगा और ऐसे में यदि घर में कोई नागवार स्थिति आती है तो दोष उसी नारी के मत्थे मढ़ा जाता रहेगा  और उस पर तुर्रा ये कि आज महंगाई इतनी ज्यादा हो गयी है कि दोनों के काम करने पर ही घर चल सकता है ,मुझे तो नहीं लगता क्योंकि इस तरह से नारी के सौन्दर्य प्रसाधन और छोटे छोटे  बहुत  से व्यर्थ  के खर्चे  भी इसमें  जुड़ जाते हैं और घर की अर्थव्यवस्था वही डांवाडोल बनी रहती है किन्तु मेरी सोच को कौन देखता है देखते हैं नारी सशक्तिकरण जिसका फायदा आज भी पुरुष ही उठा रहा है और नारी को स्वतंत्रता के नाम पर बैलों की तरह जोत रहा है .
   पहले पति कमाकर लाता  था और पत्नी घर संभालती थी किन्तु आज दोनों को घर से जाने की जल्दी जिसमे पिसती है औरत ,जिसके काम के घंटे कभी कभी तो १८ भी हो जाते हैं और इस स्थिति के कारण बच्चों को जो लापरवाही झेलनी पड़ती है और उन्हें जो कुछ भी करने की आज़ादी मिल जाती है वह अलग ,घर में कोई होता ही नहीं जो देखे कि बच्चा किस दिशा में जा रहा है .वे पैसे से सब कुछ खरीदकर बच्चों के लिए सुख सुविधा का तमाम सामान जुटा देते हैं किन्तु जो सबसे ज़रूरी है वही नहीं दे पाते ,वह प्यार ,जो उन्हें जीवन के रणक्षेत्र में आगे बढ़ने को प्रेरित करता है ,वह स्नेह ,जो उन्हें देता है वह ताकत जिससे वे कड़े संघर्ष के बाद भी सफलता हासिल करते हैं ,वह समझ ,जो उनमे भरता  है आत्मविश्वास और ये सब नहीं कर पाते हैं इसलिये होते हैं  आरुषि जैसे  कांड .
   आज ये बदलती हुई प्राथमिकताओं का ही असर है कि शादी के वक़्त तो लड़की सुन्दर हो ,पढ़ी लिखी हो ,गृह्कार्यदक्ष हो नौकरी करती हो,देखा जाता है तब तो ऐसी कोई प्राथमिकता नहीं होती कि वह पति को समय भी दे और शादी के बाद ये भी जुड़ जाती है और फलस्वरूप होते हैं वरुण वत्स जैसे दुखद हादसे जिसके एक मात्र जिम्मेदार आज के युवा ही हैं ,लड़के ही हैं जिन्हें अपने स्टेटस के लिए लड़की चाहिए ''जॉब वाली ''क्योंकि वे नहीं जानते कि घर कैसे बनता है .
             शालिनी कौशिक
  [WOMAN ABOUT MAN ]