शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

जश्न-ए-बर्बादी...

माता ने खून से सींचा था
पिता ने की थी रखवाली
आज वहीं बेटी बाबुल
का कर जायेगी घर खाली !!

दिल में उमंगो,हसरतों से
सजी हैं तमन्नाओं की सेज
हर हसरत तब चूर हुई
जब रोक फेरों को माँगा देहज !!


देहज लेकर डोली उठी
पर भेड़िये की भूख ना मिटी
मांग पर माँग बढ़ती गयी
मासूम बिटिया खूब पिटी !!


जब माँगे पूरी न हो सकी
जुल्म की  इंतेहा हो गयी
मासूम निर्दोष बाबुल की गुड़िया
देहज के कुएं में खो गयी !!

सुन लो ओ बेटियों वालों
देहज लेकर ना करे शादी
ना बजे कोई शहनाई
ना मनेगी जश्न-ए-बर्बादी :( !!