शुक्रवार, 28 मार्च 2014

हुकुम देना है हक़ इनका ,हुकुम सुनना हमारा फ़र्ज़ ,

 
बहाने खुद बनाते हैं,हमें खामोश रखते हैं ,
बहाना बन नहीं पाये ,अकड़कर बात करते हैं .
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हुकुम देना है हक़ इनका ,हुकुम सुनना हमारा फ़र्ज़ ,
हुकुम मनवाने की ताकत ,पैर में साथ रखते हैं .
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मेहरबानी होती इनकी .मिले दो रोटी खाने को ,
मगर बदले में औरत के ,लहू से पेट भरते हैं .
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महज़ इज़ज़त है मर्दों की ,महज़ मर्दों में खुद्दारी ,
साँस तक औरत की अपने ,हाथ में बंद रखते हैं .
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पूछकर पढ़ती-लिखती हैं ,पूछकर आती-जाती हैं ,
इधर ये मर्द बिन पूछे ,इन्हीं पर शासन करते हैं .
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इशारा भी अगर कर दें ,कदम पीछे हटें उसके ,
खिलाफत खुलकर होने पर ,भी अपनी चाल चलते हैं .
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नहीं हम कर सकते हैं कुछ भी ,टूटकर कहती ''शालिनी ''
बनाकर  जज़बाती हमको ,ये हम पर राज़ करते हैं .

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शालिनी कौशिक 
   [WOMAN ABOUT MAN

रविवार, 16 मार्च 2014

लड़की होना एक अभिशाप......

बेशक हम अपने मन को बहलाने के लिए कभी-कभार प्राउड कर सकते हैं कि हम एक लड़की हैं 
पर बाबा उस पल दो पल की ख़ुशी पर मेरी उम्र बहुत भारी हैं 
मुझे हमेशा अफ़सोस रहेगा कि उस खुदा ने मुझे एक लड़की बनाया 
केवल कुछ औरतों को आजादी मिल जाने से बाकि आधी आबादी के बराबर 

की औरतों की  बेड़ियों को भी काट दिया गया हो जरुरी तो नहीं ??
अरे बाबा यहाँ पर तो लड़की के बोलने तक पर पाबन्दी लगा दी जाती हैं 
कुछ करना तो बहुत दूर की बात हैं :(
किसी के टोकने या डाँटने पर बेचारी लड़कियां बेचारी कुछ नहीं बोलती हैं 
बस चुपचाप वो उस जिल्लत के आंसू पीती रहती हैं 
जो गुनाह बेचारी लड़कियां कभी करती ही नहीं हैं, वो उसका भी जुल्म बिना कुछ कहे सह लेती हैं 
मैं पिछले कहीं सालों से विरोध कर रही हू किसी और के लिए नहीं केवल अपने ही लिए 
और मेरे घर में मुझे इसका पूरा हक़ व अधिकार दिया भी गया हैं 
यक़ीनन आपके पेरेंट्स का सपोर्ट आपके साथ हो तो 
सारी कायनात भी खुद-बेखुद आपकी और हो ही जाती हैं 
बहुत हद तक सोच बदल भी गयी हैं लड़कियों के कपड़ों से लेकर सोच व विचार तक.… 
पर शायद अभी तो हक़ की लड़ाई बहुत अधूरी सी हैं 
अभी तो बहुत जहर पीना बाकी हैं 
अभी तो हर मोड़ पर अग्नि परीक्षा हम लड़कियों का इंतज़ार कर रही हैं 
बेशक कभी ना कभी तो जलना ही हैं 
i hate to me, my life, this society n this world.....
सही हैं हर दिन रविवार नहीं होता हैं इसलिए हर दिन खुशियाँ भी केवल हमारा ही इंतज़ार नहीं कर रही होती हैं जिसमें से लड़कियों का तो बिल्कुल भी नहीं 
गॉड आप इतने निर्दयी नहीं हो सकते या तो दिला दो हम गर्ल्स को हमारा हक़ व अधिकार 
या फिर आप भी इस दुनिया में आओ और देखो कुछ दिन हम लड़कियों की तरह जीकर 
महसूस करो यहाँ की जिल्लत व घुटनभरी जिंदगी को थोड़ा आप भी 
ताकि आपको भी तो पता चले कि आखिर लड़कियां इतने अधिकार क्यों मांगने लगी हैं 
क्यूँ हर बात पर सिहर उठती हैं :(
हो गया ना रंग में भंग........ 
anyway wish u a very happy holi to all........

शनिवार, 8 मार्च 2014

सिर्फ एक ही दिन महिला दिवस क्यों.....

पिछले 4-5 दिनों से कोशिश कर रही हू महिलाओं पर कुछ स्पेशल लिखने की
खैर अब वो तो आप ही लोगों की हौसला अफजाई से पता चलेगा कि मेहनत कितना रंग लायी हैं :-)

आज महिला दिवस हैं खुश हो जाओ भई आज तो अपना दिन हैं 
पर यक़ीनन मेरे गांव की चाचियों, दादियों के लिए इस दिन का कोई महत्व नहीं हैं 
इवन उन्हें तो शायद पता भी नहीं होगा कि यह होता क्या हैं ????
आज मेरे मन में जो पहला सवाल कौंधा वो यह था कि 
सिर्फ एक ही दिन महिला दिवस क्यों ????
या महिला दिवस की ही तरह किसी एक दिन पुरुष दिवस क्यों नहीं ??
जवाब खुद-बेखुद ढूंढा कि वो शायद इसलिय ताकि बाकि के 364 दिन पुरुष दिवस मनाया जा सके !!
और मनाये भी क्यों ना अरे भई! अपना समाज पुरुष प्रधान ही तो हैं 
मनाने का इनका हक़ बनता हैं :(
देखिए मूल भावना को समझें पुरुष मूलत: नारी का बड़ा सम्मान करते हैं 
नारी को देवी मानते हैं, सती पूजा करते हैं और अगर नारियाँ पूजा चाहती हैं तो जलना आवश्यक हैं 
नारियाँ कभी पति की चिता पर जलती थी 
अब इस युग में हमारा सम्मान इस कदर बढ़ गया हैं कि 
स्वयं पति अपने हाथ से भी हमें जला सकता हैं :(
आजकल के लड़कें चाहते तो सीता जैसी पत्नी हैं पर 
राम कोई नहीं बनना चाहता 
उफ्फ पुरुषों का सोचना हैं कि नारियाँ गंगा सी पवित्र रहें और 
पुरुष बगल में गंदे नालें जैसे बहते रहें :-)
पुरुषों को अधिकार हैं कि वो हमेशा हमें हमारी हदें बताते रहे 
हर जगह नारियों के लिए लक्ष्मण रेखायें खिंच दी जाती हैं 
ऑफिस जाओ पर किसी से बेमतलब की बातें मत करना 
कॉलेज में पढ़ाई कर लो लेकिन किसी से दिल मत लगा बैठना 
गुमने जा सकती हो पर कहीं बहक मत जाना 
मूवी देख सकती हो पर सिनेमा हॉल जाना हमें गवारा नहीं etc !!
कैसा देश हैं कैसी दुनिया हैं जहाँ का पुरुष ही हमेशा से कर्ता-धर्ता रहा हैं 
यह पुरुष ही हैं जो एक पति के रूप में होता हैं तो अपनी  पत्नी पर शक करता हैं 
जब एक बाप के रूप में होता हैं तो बेवजह अपनी बेटी को अपने प्यार से दूर कर देता हैं 
यह पुरुष ही हैं जब उसके प्यार को स्वीकार नहीं किया जाता हैं तब तेजाब से लड़की की जिंदगी को ही जला डालता हैं 
पुरुषों की हार्दिक इच्छा हैं कि नारी आगे बढे बस नारी इस बात का 
ख्याल रखे कि वो पुरुषों से आगे बढ़ने की कोशिश ना करे !!
वाह रे मेरे देश यहाँ कभी प्रतिभा पाटिल का गिरना ब्रैकिंग न्यूज़ बन जाता हैं 
तो कभी जूलिया गिलार्ड का पैर से जूता निकल जाना 
यह पुरुष ही हैं जो आज तक महज नारी को सामान और सम्पति की तरह पेश करता आया हैं 
वरना क्या मजाल कि केवल लड़कियों को ही आइटम की तरह पेश किया जाए ??
यह समाज ही हैं जो लड़की के दुप्पटे के महज खिसक जाने से भी उसे निचता का तमगा पहना दिया जाता हैं 
जबकि पुरुष खून करने के बाद भी सफाई देते नजर आते हैं कि मैंने कुछ गलत नहीं किया 
उनके सौ गुनाह माफ, और औरत का एक बार बहक जाना मतलब मृत्युढण्ड :(
कैसा महिला दिवस, कैसे अधिकार और कैसा हक़ ????
नहीं चाहिए हमें एक दिन का मान-सम्मान, बराबर हक़ करने का दिखावा 
इसकी तस्वीर अब बदलनी ही चाहिए !!!!!
"आधी शिक्षा, आधी सेहत ,आधी मजदूरी मिली 
सब हुए आजाद पर हमको न आजादी मिली 
देश में बेटियां अगर मायूस हैं नाशाद हैं 
तो दिल पर हाथ रखकर कहिए क्या हम आजाद हैं ????
क्या हम महिला दिवस भी हमेशा नहीं मना सकते ????"
जितना अनुभव किया उसके अनुसार इतना ही कह सकती हु नारी ही सच्ची शक्ति हैं 
बेशक मेरे घर में भी मेरा भाई हैं पापा हैं पर यक़ीनन पुरुषों को सम्भालने का काम महिला ही करती हैं 
जब पुरुष और महिला दोनों ही एक पहिए के दो पहलू हैं तो महिला को महज बराबर अधिकार देने का कहा जाता हैं पर दिये क्यों नहीं जाते हैं ?????
हम सहनशक्ति जरुर हैं पर जिस दिन सहन करने की हद हो गई उस दिन जरुर यह समाज और इसकी तस्वीर बदलेगी !!!!!!!!
बेशक किन्हीं महाशय जी को मेरी बातें बुरी लग सकती हैं 
पर आप भी थोड़ी सहनशक्ति रखना सिख लीजिए ना आफ्टर आल मैंने कुछ बुरा तो कहा नहीं जो सच हैं बस हैं झुठलाने से तो भला सच बदल नहीं सकता ना ??????
अंत में इतना ही कि -
नारी का परिचय इतना कि यह भारत की तस्वीर हैं 
यह जीजा की परम सहेली पन्ना की प्रतिछाया हैं 
कृष्णा के कूल की मर्यादा लक्ष्मी का शमशीर हैं 
इनका परिचय इतना कि यह भारत की तस्वीर हैं :-)
CHEER TO ALL GIRLS.....
HAPPY INTERNATIONAL WOMAN DAY.....!!!!!

मंगलवार, 4 मार्च 2014

''पति के दिल की आग ने पत्नी को किया राख ''



Assam woman dies of burn wounds, police say she's not the one who kissed Rahul

मीडिया और सियासत यदि आज के परिप्रेक्ष्य देखा जाये तो एक सिक्के के दो पहलू बनकर रह गए हैं .आज की परिस्थितियों में मीडिया पूर्णरूपेण इसी ताक में लगा है कि किसी भी तरह कोई भी मुद्दा सियासी राहों में उछलकर हड़कम्प मचा दिया जाये.कोई वेबसाइट और कोई भी समाचार आज इस समाचार को अपने मुख्य पृष्ठ पर स्थान देने से नहीं चूका कि ''राहुल गांधी को चूमने पर पति ने की हत्या ''.राहुल गांधी आज अपनी कर्मशील कार्यशैली और जगह जगह जाकर जनप्रतिनिधियों से मुलाकात कर उनकी समस्याओं को जानकर उनके निवारण सम्बन्धी कार्यक्रम को अपने दल के घोषणा पत्र में स्थान देने में व्यस्त हैं और उनका यह कार्यक्रम जनता में खासा लोकप्रिय हो रहा है किन्तु मीडिया ये सब नहीं चाहता उसकी चाहत एकमात्र यही है कि ''जिसे मीडिया उभारे जनता उसे ही स्वीकारे '' और इसलिए बार-बार राहुल गांधी का नाम उछालकर उनके अभियान में रुकावटें पैदा करने में लगा है नहीं देख रहा है कि वह अपने मुख्य कर्त्तव्य से इस नाते विमुख हो रहा है जिसका आगाज़ और अंजाम दोनों ही सच्चाई और ईमानदारी को साथ लेकर अन्याय व् अत्याचार का नाश करने में है .
औरत आरम्भ से ही आदमी द्वारा अपनी संपत्ति की तरह समझी गयी ,गुलाम से बढ़कर उसकी कभी आदमी ने कोई हैसियत होने नहीं दी .आदमी के अनुसार औरत बस उसकी कठपुतली बनकर रहे और अपना कोई अलग अस्तित्व कभी न समझे .सोमेश्वर चुटिया एक ऐसे व्यक्ति का नाम है जिसने पुरुष सत्तात्मक समाज की इसी मानसिकता का प्रतिनिधित्व कर अपनी पत्नी बॉँटी चुटिया को जिन्दा जलाकर मार डाला ,अब इस बात के पीछे ये कहा जा रहा है कि उसने उसे राहुल गांधी के कार्यक्रम में जाने से रोका था ,उसने उसे राहुल गांधी को चूमने के कारण जलाकर मार डाला .पडोसी ये कारण कह रहे हैं तो प्रशासन उसकी वहाँ उपस्थिति से ही इंकार कर रहा है. कोई मतलब नहीं इन बातों का ,मामला सीधा और साफ है पुरुष और नारी का सम्बन्ध ,जिसे नारी द्वारा देवता का दर्जा दिया गया उसी ने नारी को पैर की जूती समझा ,कोई नहीं कह रहा कि क्या हक़ बैठता है पुरुष को नारी को जिन्दा मार देने का ?क्या नारी का जीवनदाता वह है ?अगर नारी का यह आचरण उसे नापसंद है तो वह स्वयं को उससे अलग कर सकता है ,स्वयं का वह जो चाहे कर सकता है किन्तु कोई अधिकार उसे इस बात का नहीं है कि वह उसे इस तरह से या कैसे भी ज़िंदगी से महरूम कर दे ,पर कहीं भी यह आवाज़ नहीं उठायी जा रही है .वही मीडिया जो नारी सशक्तिकरण के लिए कभी बेटी ही बचाएगी जैसे अभियान चलाता है ,तो कभी मोमबत्ती जलाकर सोये समाज को जागने के लिए ललकारता है वह ऐसे मामले में सही पथ का अनुसरण क्यूँ नहीं करता ?क्यूँ नहीं इस समाचार का शीर्षक ''पति द्वारा पत्नी की जलाकर हत्या ''रखा गया ?पत्नी वह जो कि सामान्य घरेलू महिला न होकर बेकाजन ग्राम पंचायत की पार्षद थी ,क्यूँ मीडिया को नहीं दिखी यहाँ विकास की राहों पर कदम बढ़ाती पत्नी के लिए पति ईर्ष्या ?समाचार का शीर्षक कहें या मामले का एकमात्र सत्य ,वह यही है कि ''पति के दिल की आग ने पत्नी को किया राख ''क्यूँ मीडिया ने इस सत्य को नहीं स्वीकारा ?क्यूँ नहीं कहा कि आदमी को तो बस एक बहाना चाहिए औऱत पर कहर ढाने का और औरत जहाँ चूक जाती है वहाँ ऐसा ही अंजाम पाती है और हद तो ये है कि ऐसे समय पर हर वह ऊँगली जिसे किसी को निशाना बनाना हो वह उस तरफ उठकर अपना उल्लू सीधा कर जाती है और यही यहाँ हो रहा है .पुरुष के दमनात्मक रवैये की शिकार औरत की हालत का जिम्मेदार राहुल गांधी को बनाकर अपना उल्लू ही तो सीधा किया जा रहा है .
''औरत पे ज़ुल्म हो रहे ,कर रहा आदमी ,
सच्चाई को कुबूलना ये चाहते नहीं .
गैरों के कंधे थामकर बन्दूक चलाना
ये कर रहे हैं काम ,मगर मानते नहीं .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

रविवार, 2 मार्च 2014

सिर्फ लड़की ही :-)

उस उदास लड़की के चेहरे को ध्यान से पढ़ो 
वहाँ आपको दुःख के सूखे हुए आंसू साफ़ नजर आयेंगे 
यह दुःख सिर्फ उसका नहीं हैं 
माँ ,दादी, भुआ ,बहन यहाँ तक कि 
पिता की भी पीड़ा समेटे हैं उसकी आँखें 
उनके तमाम दुखों के बीच वह भूल ही जाती हैं अपना दुःख 
कि यह सारे लोग इसलिए भी दुखी हैं कि 
वह लड़की हैं ,लड़का नहीं हैं !!!!

उसका नन्हा सा भाई मचलता रहता हैं उसकी गोद में चढ़ने को 
और गोद में उठाते ही वह ख़ुशी के मारे किलकारियाँ करने लगता हैं 
उसकी ख़ुशी से भूल ही जाती हैं वह अपना सारा दुःख 
यह भी कि भाई के नाम पर ही मारे जाते हैं उसे ताने 
उसे ही मिलता हैं सारा दुलार उसके हिस्से का 
इन सबके परे वह तो बस प्यार करती हैं उसे !!!!!


यकीनन लड़की जन्म से लेके अंत तक दूसरों या अपनों 
की ख़ुशी के लिये ही जीती हैं वो जिस दिन से यह सुनना शुरू 
करती हैं कि तुम लड़की हो तब से वो शुरू करती हैं अपनी खुशियों को कम करना 
वो शुरुआत करती हैं अपने सपनों को दफ़न करने की !!
लड़की का संस्कारी और समझदार होना ही उसकी आजादी को छीन लेता हैं 
चलो भई कई अरसे बीते अच्छे बनने के अब हम लड़कियाँ भी क्यों ना बन जाए थोड़ी बुरी 
ताकि जी सकेंगे हम भी थोड़ा अपने लिये, हम भी थोड़ी बाँहें फैला सकेंगे गुनगुनी सी धुप में !!