गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

मुट्ठी से रेत

मुट्ठी से रेत

मुट्ठी से रेत
अरे मत मारो इसे! अभी इसकी उम्र ही क्या है,आपको कोई गलत फहमी हुई है इतना बड़ा जघन्य अपराध सौलह साल का लड़का कैसे कर सकता है? किशोर की माँ ने जेल में पुलिस से पिटते हुए अपने बच्चे को बचाते हुए कहा।
थानेदार ने गुस्से से उबलते हुए कहा " ये शराफत का मुखोटा उतार कर अपने दिल में झाँक कर देख! 
जो तूँ कह रही है क्या वो सच है ? 
हर माह तू ही तो अपने बिगड़े बेटे को पुलिस से जेल से बचाने की भीख हमसे मांगने आती है, जो तुम्हे कभी मिलती नही,और ना ही, आज मिलेगी।
तभी किशोर के पापा ने जेल में आकर थानेदार से कहा " साहब कड़ी से कड़ी सजा दिलवाइए इसे, हमारी नाक में दम कर रखा है और आज तो इसने हमे किसी को मुहँ दिखाने के काबिल भी छोड़ा।
किशोर की माँ पति के बिगड़े हुए तेवर देख कर अंदर तक काँप गयी, आज उसे लगा की उसके बेटे की जिंदगी हाथ से मुट्ठी की रेत की तरह फिसल गयी।
शान्ति पुरोहित

जन्मदिन की पार्टी


"जन्मदिन की पार्टी"
न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रतीक शर्मा के बेटे के जन्मदिन का अवसर था।
जाहिर सी बात है मेहमानो को तो निमन्त्रित करना ही था
प्रतीक की पत्नी जो जिला शिक्षा अधिकारी थी, चाहती थी कि बेटे का जन्मदिन चुनिंदा लोगो के साथ किसी होटल में मनाया जाय।
पर प्रतीक चाहता था घर में अपने पूरे परिवार के साथ मनाया जाय।
अंत में बेटे का जन्मदिन घर में ही मनाना तय हुआ।
प्रतीक के परिवार के लोग दूसरे शहर से आये थे और पत्नी के उसी शहर से आये थे।
प्रतीक के परिवार के लोग उस समय चकित रह गए जब उन्हें पास ही के खाली पड़े प्रतीक के किसी परिचित के घर यह कह कर ठहराया गया कि रात को जब केक पार्टी होगी आपको लेने आ जाऊँगा।
"भाई साहब क्या सोच रहे हो, प्रतीक के छोटे भाई ने कहा तो प्रतीक की तन्द्रा भंग हुई ,उसे याद आया कि पत्नी ने कभी भी मेरे परिवार के लोगो को अपने बराबर नही समझा बल्कि उन्हें छूत की बीमारी ही समझा। अपने परिवार को श्रेष्ठ , सबकुछ जानते हुए भी एक बार फिर अपने परिवार की तोहीन करवाई ।
शान्ति पुरोहित

मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

क्यों लेते हो दहेज़??

एक सन्देश उन तमाम लड़कों के नाम जो मेरे ही हमउम्र के हैं जिनमें से कोई आईएअस, कोई आरएअस, कोई अध्यापक, कोई पीओ, तो कोई डॉक्टर बनता हैं पढ़-लिखकर!
सुनो! एक बात सुनाती हूँ-
जरा गौर से सुनना....
आपने इतनी पढ़ाई की हैं इस लेवल तक पहुंचे हो तो आज को कल से थोड़ा बेहतर बनाओ फिर से कल को ही क्यों दोहराना??
क्यों लेता हैं आज का युवा वर्ग भी दहेज़....वो बिल्कुल साफ़ मना क्यूँ नहीं कर देता....आप एक अच्छे काम के लिए महज कुछ शब्द बोलकर अपनों का सामना तक नहीं कर सकते....आप गलत के खिलाफ आवाज भी नहीं उठा सकते, आपमें इतनी हिम्मत भी नहीं हैं कि आप अच्छा व बुरा समझ सकते हैं तो आप उस पोस्ट के क़ाबिल कैसे हो सकते हैं??
आप एक जिम्मेदार नागरिक तो कभी हो ही नहीं सकते हैं...क्यों ले लेते हो बिना कुछ बोले लाखों रुपये दहेज़ में??
हां माना कि बड़ों के सामने संस्कारी बच्चे कैसे बोल सकते हैं तो जब बात पसंद नापसंद की हो तब कैसे बोला जाता हैं??? तब कहाँ चली जाती हैं आपकी हय्या व शर्म....तब तो नहीं कहते नहीं हमें यह हक नहीं हैं हम तो संस्कारों वाले हैं....एक बार कोशिश करके तो देखिए कहिए उनसे कि हम शादी लड़की से करते हैं हमें जिंदगी में एक अच्छे हमसफ़र की जरुरत होती हैं ना कि ऐशो आराम की....जो बड़े आपके लिए अपनी ख्वाहिशों को भुला तक देते हैं वो जरुर आपकी अच्छी पहल को भी तवज्जो देंगे ही....वरना मेरा तो एक ही सवाल हैं क्यूँ ले लेते हो दहेज़
कमाकर दिये थे क्या आपने....या करते हो एक पिता से उसकी बेटी का सौदा??
सबसे बड़ा हथियार बस लोगों को अच्छे के लिए समझाओ तो एक ही वाक्य लोग क्या कहेंगें??
धत....कौनसे लोग....?? यह आप और हम मिलकर ही तो बनते हैं लोग....जब आप बुरा करते हो तब तो इतना नहीं सोचते हो??...जब लड़ना हो तब लोग कहीं नजर नहीं आते हैं क्या??
एक अकेली लड़की अपना सब कुछ छोड़कर आपकी हर चीज़ को अपनाती हैं वो अपने बचपन के उस घर को ऐसे भुला देती हैं जैसे कि वो कभी उसका था ही नहीं....लड़के अपने ससुराल में बेवजह जरा चार दिन भी रहकर बताएँ....कितनी शक्तिशाली होती होगी ना वो जो कि दहेज़ लेने के बाद भी विश्वास करती हैं और उसी रिश्ते में खो जाती हैं.....आपके घर को अपने घर से भी ज्यादा अपना समझकर संभालती हैं, वक़्त-बेवक्त सबको साथ लेकर चलती हैं, सबको मोतियों की माला सा साथ पिरोकर चलती हैं, गलती ना होने पर भी बेवजह किसी के भला-बुरा कहने पर भी सब कुछ चुपके से सह जाती हैं ताकि कोई उसके जन्म को ना ललकारे....खुद दुखी हो भी जाती हैं अकेले में पर सबकी खुशियों का ख्याल बख़ूबी रखती हैं वो....यह मत सोचना कि हम लोग उन्हें कमाकर खिलाते हैं...नहीं, कभी नहीं वो खुद अपना कमाकर खाती हैं....हिसाब लगा लेना घर का काम किसी भी हाल में नौकरी से कम नहीं होगा....हर चीज़ वो अपनी मेहनत से पाती हैं तो फिर आप दहेज़ किसलिए लेते हो??
अगर शादी रिश्ता ना होकर व्यापार ही हैं तो क्यूँ नहीं कर लेते सबके सामने ही स्वीकार की हम तो सौदा ही कर रहें हैं लड़की का.....जानती हूँ बात थोड़ी कड़वी जरुर लगेगी पर सच यहीं हैं😐
दहेज़ तो एक खतरनाक बीमारी हैं....इस दहेज़ रुपी दानव को मिटाना हमें ही हैं ताकि कोई भी पिता बेटी को बोझ ना समझें😊
जय हो!

मंगलवार, 4 अगस्त 2015

क्योंकि मै एक लड़की हूँ.....

मुझे हर पल कमजोर बनाया जाता है
ये कहकर कि मै एक लड़की हूँ

मुझे सपने देखने की इजाज़त नहीं
क्योंकि मै एक लड़की हूँ

मुझे घूमने फिरने का हक नहीं
क्योंकि मै एक लड़की हूँ

मुझे जोर से खिलखिलाने का हक़ नहीं
क्योंकि मै एक लड़की हूँ

मुझे अपने अरमानो के आसमानों को
     देखने का हक़ नहीं
  क्योंकि मै एक लड़की हूँ

मुझे तारा बन बुलंदियों पर पहुच
   चमकने का हक़ नहीं
 क्योंकि मै एक लड़की हूँ

मुझे अपने हुनर को तलाशने
       का हक़ नहीं
क्योंकि मै एक लड़की हूँ

पर आज मै कहती हूँ कि अपना
 एक ऐसा अस्क बनाउंगी
   कि पूरी दुनिया को
अपने हुनर के आगे झुकउगी

और गर्व से हर एक से यह कह पाउगी
   कि हा मै एक लड़की हूँ
     कि हा मै एक लड़की हूँ ...........

बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

आज के मर्द की हकीकत .



Hand writing I Love Me with red marker on transparent wipe board. - stock photoSelfish business man not giving information to others.Mad expression on his face.White background. - stock photoScale favoring self interest rather than personal values. - stock vector   
मर्द की हकीकत 
''प्रमोशन के लिए बीवी को करता था अफसरों को पेश .''समाचार पढ़ा ,पढ़ते ही दिल और दिमाग विषाद और क्रोध से भर गया .जहाँ पत्नी का किसी और पुरुष से जरा सा मुस्कुराकर बात करना ही पति के ह्रदय में ज्वाला सी भर देता है क्या वहां इस तरह की घटना पर यकीन किया जा सकता है ?किन्तु चाहे अनचाहे यकीन करना पड़ता है क्योंकि यह कोई पहली घटना नहीं है अपितु सदियों से ये घटनाएँ पुरुष के चरित्र के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती रही हैं .स्वार्थ और पुरुष चोली दामन के साथी कहें जा सकते हैं और अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए पुरुषों ने नारी का नीचता की हद तक इस्तेमाल किया है .
       सेना में प्रमोशन के लिए ये हथकंडे पुरानी बात हैं किन्तु अब आये दिन अपने आस पास के वातावरण में ये सच्चाई दिख ही जाती है .पत्नी के माध्यम से पुलिस अफसरों से मेल-जोल ये कहकर-
''कि थानेदार साहब मेरी पत्नी आपसे मिलना चाहती है .''
नेताओं से दोस्ती ये कहकर कि -
''मेरी बेटी से मिलिए .''
तो घिनौने कृत्य तो सबकी नज़र में हैं ही साथ ही बेटी बेचकर पैसा कमाना भी दम्भी पुरुषों का ही कारनामा है .बेटी को शादी के बाद मायके ले आना और वापस ससुराल न भेजना जबकि उसे वहां कोई दिक्कत नहीं संशय  करने को काफी है और उस पर पति का यह आक्षेप कि ये अपनी बेटी को कहीं बेचना चाहते हैं जबकि मैने इनके कहने पर अपने घर से अलग घर भी ले लिया था तब भी ये अपनी बेटी को नहीं भेज रहे हैं ,इसी संशय को संपुष्ट करता है .ये कारनामा हमारी कई फिल्मे दिखा भी चुकी हैं तेजाब फिल्म में अनुपम खेर एक ऐसे ही बाप की भूमिका निभा रहे हैं जो अपनी बेटी का किसी से सौदा करता है .
    जो पुरुष स्त्री को संपत्ति में हिस्सा देना ही नहीं चाहता आज वही स्टाम्प शुल्क में कमी को लेकर संपत्ति पत्नी के नाम खरीद रहा है पता है कि मेरे कब्जे में रह रही यह अबला नारी मेरे खिलाफ नहीं जा सकती तो जहाँ पैसे बचा सकता हूँ क्यूं न बचाऊँ ,इस तरफ सरकारी नारी सशक्तिकरण को चूना लगा रहा है . जिसके घर में पत्नी बेटी की हैसियत  गूंगी गुडिया से अधिक नहीं होती वही सीटों के आरक्षण के कारन स्थानीय सत्ता में अपना वजूद कायम रखने के लिए पत्नी को उम्मीदवार बना रहा है .जिस पुरुष के दंभ को मात्र इतने से कि ,पत्नी की कमाई खा रहा है ,गहरी चोट लगती है ,वह स्वयं को -
''जी मैं  उन्ही  का पति हूँ जो यहाँ  चैयरमेन के पद  के लिए खड़ी हुई थी ,''
  या फिर अख़बारों में स्वयं के फोटो के नीचे अपने नाम के साथ सभासद  पति लिखवाते शर्म का लेशमात्र भी नहीं छूता .
   पुरुष के लिए नारी मात्र एक जायदाद की हैसियत रखती है और वह उसके माध्यम से अपने जिन जिन स्वार्थों की पूर्ति कर सकता है ,करता है .सरकारी योजनाओं के पैसे खाने के लिए अपने रहते पत्नी को ''विधवा ''तक लिखवाने  इसे गुरेज नहीं .संपत्ति मामले सुलझाने के लिए घोर परंपरावादी माहौल में पत्नी को आगे बढ़ा बात करवाने में शर्म नहीं .बीवी के किसी और के साथ घर से बार बार भाग जाने पर जो व्यक्ति पुलिस में रिपोर्ट लिखवाता फिरता है वही उसके लौट आने पर भी उसे रखता है और उसे कोई शक भी नहीं होता क्योंकि वह तो पहले से ही जानता है कि  वह घर से भागी है बल्कि उसके घर आने पर उसे और अधिक खुश रखने के प्रयत्न करता है वह भी केवल यूँ कि अपने जिस काम से वह कमाई कर रही है वह दूसरों के हाथों में क्यों दे ,मुझे दे ,मेरे लिए करे ,मेरी रोटी माध्यम बने . 
    पुरुष की एक सच्चाई यह भी है .कहने को तो यह कहा जायेगा कि ये बहुत ही निम्न ,प्रगति से कोसों दूर जनजातियों में ही होता है जबकि ऐसा नहीं है .ऑनर किलिंग जैसे मुद्दे उन्ही जातियों में ज्यादा दिखाई देंगे क्योंकि आज के बहुत से माडर्न परिवारों ने इसे आधुनिकता की दिशा में बढ़ते क़दमों के रूप में स्वीकार कर लिया है किन्तु वे लोग अभी इस प्रवर्ति को स्वीकारने में सहज नहीं होते और इसलिए उन्हें गिरा हुआ साबित कर दिया जाता है क्योंकि वे आधुनिकता की इन प्रवर्तियों को गन्दी मानते हैं किन्तु यहाँ मैं जिस पुरुष की बात कह रही हूँ वे आज के सभ्यों में शामिल हैं ,हाथ जोड़कर नमस्कार करना ,स्वयं का सभ्य स्वरुप बना कर रखना शालीन ,शाही कपडे पहनना और जितने भी स्वांग  रच वे स्वयं को आज की हाई सोसाइटी का साबित कर सकते हैं करते हैं ,किन्तु इस सबके पीछे का सच ये है कि वे शानो-शौकत बनाये रखने के लिए अपनी पत्नी को आगे कर दूसरे पुरुषों को लूटने का काम करते हैं .इसलिए ये भी है आज के मर्द की एक हकीकत .
                    शालिनी कौशिक 
                        [WOMAN ABOUT MAN]

गुरुवार, 22 जनवरी 2015

उफ्फ.....यह लड़की कितनी बड़ी हो गयी ??

अब और कितना पढ़ोगी ??
तुम तो बड़ी होशियार हो अब तक तो तुम्हें जॉब मिल जानी चाहिए थी
तुम इतना ज्यादा पढ़कर क्या बनोगी ??
तुमने बहार रहकर इतनी पढ़ाई की हैं
अटलीस्ट सेकंड ग्रेड के लेवल की जॉब तो तुम्हें फर्स्ट चांस में मिल ही जानी चाहिए
और ना मिले तो अब पढाई छोड़ क्यों नहीं देती ??
शादी करके अपना घर क्यों नहीं सम्भाल लेती ??
बहार कैसे रहती हो ??
किसके साथ रहती हो ??
किस-किससे मिलती हो ??
उफ्फ मेरे ख्याल से ऐसे सारे ऊल-फिज़ूल से सवाल मेरे जैसी युवा होती हर 21-22 साल की सारिका से किये जाते होंगे ???
कुछ लड़कियाँ अगर थोड़ा आग़े बढ़ना चाहे तो वो कोई गुनाह थोड़े ही कर रही हैं
जो कि समाज के लोग उसे हर पल शक की नजर से ही देखें ??
वैसे भी आँकड़ें बताते हैं कि 10th व 12th में गर्ल्स के टोपर रहने के बाद भी कॉलेज में उनकी संख्या कम हो ही जाती हैं :-(
क्यों सोचते हो कि महज शादी भर कर देने से, सिन्धुर भर लेने तक ही लड़की की जिम्मेदारी हैं
पढ़ने दो ना, आग़े बढ़ने दो ना
लड़की को आगे बढ़कर रिश्ते बनाने दो ना, क्यों महज उसे किसी बंधन में बांधकर
अपने कर्तव्यों से मुक्तभर हो जाना चाहते हो ??
लड़कियाँ भी इंसान हैं उड़ने दो ना उन्हें भी
बाहें फ़ैलाने दो ना, खुलकर सांसें लेने दो ना
हम 21st सदी की युवा पीढ़ी हैं
महज किसी के अपनी अँगुलियों के पैरवों पर उम्र का जोड़-घटाव करते रहने से,
महज मुहँ से ओफ्फो निकालकर कहने से ओहो तुम कितनी बड़ी हो गयी
से डर हारकर शादी नहीं करने वाले
हम किसी पर बोझ नहीं बल्कि अपनों का सहारा बनने का माद्दा रखते हैं
हर युवा लड़की के अपने खुद के गम हैं पर
अब इन ग़मों से कहीं परे जाकर वो भी सोचती हैं अपने सपनों की उड़ान के बारे में
और बेशक देर-सवेरे उसके हौसलों की उड़ान उसे मिल ही जाती हैं
अगर आप नेक इरादों से आगे बढ़ना चाहो तो
आपको इस दुनिया की कोई ताकत पीछे नहीं खिंच सकती
सफलता अवश्य मिलती हैं :-)
फीलिंग so thoughtful......yupppppp....:-)

मंगलवार, 6 जनवरी 2015

वो लड़का है ना...


वो लड़का है ना...-एक लघु कथा 
''मम्मी ''मैं कॉलिज जा रही हूँ आप गेट बंद कर लेना ,कहकर सुगन्धा जैसे ही गेट से बाहर निकली कि शिशिर ने उसका रास्ता रोक लिया .....क्या भैय्या ,जल्दी है ,आपसे शाम को मिलती हूँ ,नहीं तू कहीं नहीं जा रही ,सड़कों का माहौल बहुत  ख़राब है और मैं जानता हूँ कि तू और तेरी सहेलियां भी कुछ लड़कों से बहुत परेशान हैं .अरे तो क्या हो गया ये तो चलता ही रहता है अब जाने दो ,आधा घंटा तो कॉलिज पहुँचने में लग ही जायेगा और फर्स्ट पीरियड ही अकडू प्रशांत सर का है अगर देर हुई तो वे सारे टाइम खड़ा ही रखेंगे .सुगन्धा ने भाई की मिन्नतें करते हुए कहा .
''नहीं तू कहीं नहीं जा रही ,''ये कह धमकाते हुए वह जैसे ही उसे घर के अन्दर ले जाने लगा कि पापा-मम्मी दोनों ही बाहर आ गए .क्या हुआ क्यों लड़ रहे हो तुम दोनों ?शिशिर ने पापा-मम्मी को सारी बात बता दी .
''ठीक ही तो कह रहा है शिशिर ,''चल सुगन्धा घर में चल हमें न करानी ऐसी पढाई  जिसमे  लड़की  की जिंदगी व् इज्ज़त और घर का मान सम्मान दोनों ही खतरे में पड़ जाएँ .चल .और बारहवी तो तूने कर ही ली है ,अब प्राइवेट पढले या फिर बस पेपर देने जाना ,वैसे भी कॉलिज में कौन सी पढाई होती है ,ये कह मम्मी सुगन्धा को अन्दर ले गयी और पापा बेटे की पीठ थपथपाते हुए बाइक पर ऑफिस  के लिए निकल गए .
शाम को मम्मी और सुगन्धा जब बाज़ार से लौट रही थी तो एकाएक सुगन्धा चिल्ला उठी ...मम्मी ....मम्मी ...देखो पापा बाइक पर किसी लेडी के साथ जा रहे हैं ..परेशान होते हुए भी मम्मी ने कहा -होगी कोई इनके ऑफिस से ....पर इन्हें देख कर तो ऐसा नहीं लगता ...सुगन्धा बोली ...चल घर चल ,ये कह मम्मी खींचते हुए उसे घर ले चली .
तभी एक मोड़ पर ...'''शिशिर मान जाओ ,आगे से अगर तुमने मुझे कुछ कहा तो मैं घर पर सभी को बता दूँगी और तब तुम्हें पिटने से कोई नहीं बचा पायेगा ,''एक लड़की चिल्ला चिल्ला कर शिशिर से कह रही थी ...देखो माँ भैय्या क्या कर रहा है और लड़कियों के साथ और मुझे और लड़कों से बचाने को घर बैठा दिया ,...सही किया उसने ....भाई है तेरा वो ...और वो क्या कर रहा है ....ये तो उसका हक़ है .....वो लड़का है ना ....मम्मी ने गर्व से गर्दन उठाते हुए कहा .
शालिनी कौशिक