बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

जैसा राजा वैसी प्रजा -अब तनाव कहाँ


     नया ज़माना आ गया है आज हम वी आई पी दौर में हैं ,पहले हमारे प्रधानमंत्री महोदय साल में बच्चों से मिलने का एक दिन रखते थे और आज प्रधानमंत्री हर वक़्त देश के बच्चों को उपलब्ध हैं और वह भी उन विषयों और समस्याओं के लिए जिसे समझाने व् सुलझाने का काम बच्चों का स्वयं का ,उनके शिक्षक का और उनके माता पिता का ही है ऐसा लगता है कि देश की समस्याएं अब ऊँचे स्तर से ख़त्म हो चली हैं और अब समस्याओं का स्तर नीचे आ गया है ,अब दौर आ गया है बच्चों को उनके पैरों पर खड़े कर काबिल बनाने का और यह जिम्मा समस्याओं की कमी में प्रधानमंत्री महोदय ने लिया है तभी तो एक छात्र प्रधानमंत्री जी से सवाल पूछ सकता है कि ''मोदी सर ,क्या आपको भी परीक्षा का तनाव हुआ था ?''
           विचारणीय स्थिति है कि वह समस्या जो बच्चे स्वयं साल भर पढाई कर सुलझा सकते हैं ,वह समस्या जो बच्चों के शिक्षक उन्हें पढ़ाकर और उनसे वार्तालाप कर मिनटों में हल कर सकते हैं और वह समस्या जो बच्चों के माँ-बाप उनके कैरियर को अपनी प्रतिष्ठा का विषय न बनाकर सैकिंडों में संभाल सकते हैं उसके लिए प्रधानमंत्री तक क्यों पहुंचा जा रहा है इसके जिम्मेदार सबसे पहले हमारे बच्चे हैं ,दूसरे नंबर पर शिक्षक और तीसरे नंबर पर हमारे माता पिता हैं क्योंकि आज के बच्चे पढाई को लेकर उतने गंभीर नहीं हैं जितना उन्हें होना चाहिए ,आज वे फेसबुक पर चैट और व्हाट्सप्प पर ग्रुप बनाने में ही ज्यादा मशगूल रहते हैं और परीक्षा के लिए केवल तभी सोचते हैं जब परीक्षा सर पर आ जाती है ,दूसरे रहे हमारे शिक्षक जिनके लिए पढ़ाना केवल एक व्यवसाय बनकर रह गया है ,शिक्षा के क्षेत्र में आज चंद नाम ही होंगे जो सेवा की सोचकर आते हों अधिकांश यहाँ केवल आकर्षक वेतन देखकर ही अपना कैरियर बनाते हैं और रहे हमारे माता-पिता जो खुद हासिल नहीं कर पाए वह अपने बच्चों से हासिल करने की तमन्ना और जो हासिल कर चुके उन्हें केवल अपनी प्रतिष्ठा बनाये रखने की तमन्ना उनके बच्चों की इच्छा को कोई स्थान  लेने ही नहीं देती और उनकी इच्छाओं को पूरा करने की चक्की में ही उन बच्चों को पीसकर रख देती है ,
     और अब रहे हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ,जिन्हें सोशल मीडिया पर छाने की इतनी खुमारी है कि उन्होंने लोगो की निजी ज़िंदगी में भी घुसना शुरू कर दिया है और ऐसा दिखा दिया है जैसे देश में और कोई समस्या अब रह ही नहीं गयी है ,हमें नहीं लगता कि इतनी छोटी छोटी बातों को लेकर प्रधानमंत्री को आम जनता से जुड़ना चाहिए ,आज देश में सी आर पी ऍफ़ कैम्प पर लश्कर के हमले हो रहे हैं हमारे फौजी शहीद हो रहे हैं ,रेल दुर्घटनाएं हो रही हैं शिपयार्ड विस्फोट हो रहे हैं ,अधिवक्ता वर्ग निरन्तर अपनी विभिन्न मांगों को लेकर सामने आ रहे हैं ,क्यों किसी मन की बात में माननीय प्रधानमंत्री ''पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट बेंच ''को लेकर भाजपा की नीति पर बात नहीं करते ? क्यों माननीय प्रधानमंत्री बरसों से भाजपा से राम मंदिर की आस लगाए बैठी जनता के सामने अपने मन की बात नहीं खोलते ?प्रधानमंत्री तीन तलाक का कहर ढो रही मुसलमान महिलाओं के उद्धार की कोशिश तो करते हैं पर क्यों प्रधानमंत्री अपने मन की बात में बरसों से बिना तलाक का कहर ढो रही ,सारी ज़िंदगी उनकी बाट जोह रही त्यक्ता के रूप में जीवन बिताने वाली जसोदा बेन के उद्धार की बात नहीं करते ?
     हमारे पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू बच्चों से मिलने का केवल एक दिन रखते थे उसके अलावा उन्हें वे वैसे मिल जाएँ तो भी उनके प्रति अपने वात्सल्य के लिए वे कुछ समय निकल लेते थे किन्तु जितना समय हमारे इन सोशल मीडिया पर प्रसिद्धि का चाह रखने वाले मोदी जी के पास है उतना समय उनके पास नहीं था क्योंकि उन्हें गुलामी के दंश से निकले अपने देश का नवनिर्माण करना था ,देश को विपरीत स्थितियों से जूझने के लिए तैयार करना था ,आज क्या है आज देश खड़ा हो चुका है अपने दम पर दुश्मनों को सबक सिखा सकता है ,नेहरू जी को आवश्यकता नहीं थी अपने को स्थापित करने के लिए दूसरों का नाम गिराने की जो आज के प्रधानमंत्री महोदय का पहला काम है ,वे अपने कामों से जनता के ह्रदय में स्थान रखते थे और उनके समय में विद्यार्थियों को जो शिक्षा मिलती थी वह ही उनके परीक्षा के तनाव को दूर करने के लिए पर्याप्त थी उन्हें इस तरह से तनाव दूर करने के लिए दूसरो के मन की थाह लेने की ज़रुरत नहीं पड़ती थी ,आज सभी को पता है कि अगर प्रधानमंत्री की नज़रों में उठना है तो जहाँ तक उनका प्रचार कर सकते हो करो ,इसीलिए आज पढाई नहीं कराई जाती ,टीवी पर प्रधानमंत्री से संवाद के इंतज़ाम कराये जाते हैं और ये सभी को पता है कि ''जैसा राजा वैसी प्रजा ''तो फिर जब प्रधानमंत्री जी अपने प्रचार को मन की बात कर सकते हैं तब उनकी प्रजा उनसे सवाल पूछ अपने मन की बात से खुद को प्रसिद्द क्यों नहीं कर सकती ? अब तनाव के लिए स्थान ही कहाँ ,जैसे प्रधानमंत्री जी ने अपने मन की बात से दूर कर लिया जनता भी वैसे कर ही लेगी ऐसे में पढाई को मारो गोली ,

शालिनी कौशिक
    [कौशल ]

रविवार, 4 फ़रवरी 2018

ऐसे थे हमारे बाबू जी

 

  बाबू हुकुम सिंह ,वह नाम जिससे कैराना को राष्ट्र स्तर पर वह पहचान मिली कि कैराना का निवासी इस पूरे विश्व में मात्र इतना ही कहते पहचाना जाने लगा कि वह कैराना का रहने वाला है .एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व जो बना ही देश के लिए कुछ करने को था ,क्या किया यह इनके क्षेत्र के निवासियों से पूछो जिनके अश्रु इस वक़्त थमने का नाम नहीं ले रहे हैं ,कोई क्षेत्र ऐसा नहीं जिसमे बाबू हुकुम सिंह ने अपनी धाक न जमाई हो और क्षेत्र का कोई काम ऐसा नहीं जिसे करने में उन्होंने अपनी दिलचस्पी न दिखाई हो और अपनी सक्रियता से उसे पूरा न किया हो .
      हुकम सिंह (5 अप्रैल 1 9 38 - 3 फरवरी 2018)  एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने उत्तर प्रदेश के कैराणा से संसद सदस्य के रूप में कार्य किया था।  वह भारतीय जनता पार्टी ( भाजपा ) के थे। वह 16 वीं लोकसभा के अध्यक्षों के पैनल के सदस्य थे, और जल संसाधन संबंधी स्थायी समिति के अध्यक्ष थे। श्री सिंह ने गुर्जर समुदाय (चौहान) से स्वागत किया। उन्हें पहले सात विधानों (1 9 74-77, 1 9 80-8 9, 1 99 6-2014) के लिए उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य के रूप में चुना गया था।  उन्होंने भाजपा और कांग्रेस दोनों के तहत उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री के रूप में भी सेवा की है।
   इलाहाबाद विश्वविद्यालय से कानून स्नातक, उन्होंने 1 9 63 में पीसीएस (जे) परीक्षा को मंजूरी दे दी। लेकिन न्यायिक अधिकारी बनने के बजाय, वह 1 9 62 भारत-चीन युद्ध के बाद सेना में एक कमीशन अधिकारी के रूप में शामिल हो गए। उन्होंने कश्मीर में पुंछ और राजौरी क्षेत्रों में एक कैप्टन के रूप में 1 9 65 के पाकिस्तान युद्ध में भाग लिया। उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और 1 9 6 9 में मुजफ्फरनगर में कानून का अभ्यास करना शुरू कर दिया।  1 9 74 में उन्होंने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया, कांग्रेस के टिकट पर पहली बार विधायक बन गया। उन्होंने विधानसभा चुनावों में सात बार जीत हासिल की और 1 9 83 से 1 9 85 तक विधानसभा के उप-अध्यक्ष पद का पद संभाला। उन्होंने 1 99 6 में भाजपा के उम्मीदवार के रूप में अपना चौथा, और 2014 में अपना पहला लोकसभा चुनाव जीता।
सितंबर 2013 में, मुजफ्फरनगर दंगों से संबंधित एफआईआर में उनका नाम रखा गया था क्योंकि वह महापंचायत में शामिल हुए थे जो कि निषेधाज्ञा के आदेश के बावजूद आयोजित किया गया था। उन्होंने सांप्रदायिक तनाव को उकसाने के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि उन्होंने कोई भड़काऊ भाषण नहीं किया और इकट्ठे भीड़ को शांत करने का प्रयास किया।  जून 2016 में, उन्होंने हिंदू परिवारों की एक सूची जारी की और आरोप लगाया कि कानून और व्यवस्था की स्थिति के कारण हिंदुओं के अपने निर्वाचन क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पलायन किया गया था। बाद में उनका दावा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की एक रिपोर्ट के द्वारा मान्य किया गया।
किसान के पिता के पुत्र होने के नाते, उन्होंने खुद को किसानों, शिक्षा और बुनियादी ढांचे से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में समझा और चिंतित किया। उन्होंने राष्ट्रीय औसत की तुलना में और अधिक बहस में भाग लिया था और संसद में महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे ताकि उनके निर्वाचन क्षेत्र के लोगों को प्रभावित करने वाली समस्याओं पर ध्यान दिया जा सके।  जल संसाधन संबंधी स्थायी समिति के अध्यक्ष होने के अलावा, वह परामर्शदात्री समिति, गृह मंत्रालय और सामान्य प्रयोजन समिति के सदस्य भी शामिल हैं।[विकिपीडिया से साभार ]
     बाबू हुकुम सिंह कैराना बार के संरक्षक रहे और वो भी केवल नाममात्र के नहीं बल्कि वास्तव में क्योंकि उन्होंने कैराना बार के लिए बहुत कुछ किया ,बार एसोसिएशन कैराना के पूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय श्री कौशल प्रसाद एडवोकेट जी के अनुसार ''उत्तर प्रदेश शासन के पूर्व मंत्री व् वर्तमान में विधायक कैराना माननीय श्री हुकुम सिंह जी के प्रयासों द्वारा दिनांक 1 नवम्बर 2001 को कैराना में 2  फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना हुई थी और ऐसी कोर्ट वाला कैराना उस वक़्त प्रदेश में अकेला था ,यही नहीं बाबू हुकुम सिंह जी ने अपने ही प्रयासों से कैराना को विजय सिंह पथिक डिग्री कॉलेज की अमूल्य भेंट दी यह कैराना कांधला क्षेत्र के लड़को के लिए अमोल उपहार था क्योंकि लड़कियों के लिए तो कांधला में पहले से ही राजकीय डिग्री कॉलिज की सुविधा थी किन्तु लड़को को पढ़ने के लिए दूर दराज  के क्षेत्रो में जाना पड़ता था 
    बाबू हुकुम सिंह ने सम्पूर्ण क्षेत्र को अपने परिवार की तरह प्यार दिया और अपने परिवार में भी सर्व जन हिताय के बीज बोये, जहाँ एक तरफ आज बेटियों को लेकर लोगों में दुःख की भावना है वहीँ बाबू हुकुम सिंह के लिए उनकी बेटियां बेटों से भी बढ़कर थी ,उन्होंने अपने पांचों बेटियों की खुशियों को ही अपनी ख़ुशी माना और गुर्जर समाज जिससे वे ताल्लुक रखते थे और जो बेटियों को बेटो से निम्न स्थान ही देता है ,के होते हुए भी अपनी बेटी मृगांका सिंह को ही अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी बनाया ,
     बाबू हुकुम सिंह जैसा दिलदार व्यक्ति राजनीति में मिलना मुश्किल है वे राजनीति में आने से पहले वकालत में आये थे और इसलिए सभी वकीलों को वे अपने भाई जैसा ही सम्मान देते थे और खास तौर से कैराना के निवासियों को और इसीलिए उन्होंने कैराना बार का संरक्षक बनना स्वीकार किया था और कैराना बार से उनका अटूट स्नेह था और खास तौर पर इसके पूर्व अध्यक्ष श्री कौशल प्रसाद जी से भी ,जिनके आमंत्रण को वे कभी भी ठुकराते नहीं थे और कैराना बार के हर उस समारोह में जो इनके कैराना आगमन के समय होता था पूरे ह्रदय से उपस्थित होते थे और ऊपर का चित्र इसकी गवाही देता है जिसमे पूर्व अध्यक्ष श्री कौशल प्रसाद जी ने जैसे ही उन्हें तिलक लगाया वैसे ही बढ़कर उन्होंने भी तिलक उनके लगा दिया ,
       बाबू हुकुम सिंह इस वक़्त कैराना कांधला से सांसद थे और क्षेत्र को ऐसा रहनुमा मिलना मुश्किल है जो सच्चे अर्थों में जननेता हो ,जनता की सेवा के लिए हर वक़्त उपस्थित होता हो ,केवल कहने के लिए ही बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ न कहता हो ,केवल कहने के लिए एक बेटी को दस के बराबर न कहता हो बल्कि वास्तव में बेटी को वही माननीय स्थान देता हो जिसकी वह हक़दार है और अहंकार से दूर ,जनहित की प्रतिमूर्ति बाबू हुकुम सिंह का जाना इस पूरे क्षेत्र की अपूरणीय क्षति है जिसे सदियां भी भरने में नाकाबिल हैं ,मन उनके लिए बस यही कहने को करता है -
''हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है ,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा ,''

शालिनी कौशिक
   [कौशल ]








शनिवार, 27 जनवरी 2018

मेरा वज़ूद ऐसा है ,

rg
मेरे दुश्मन को है खलता , मेरा वज़ूद ऐसा है ,
गिराने से नहीं गिरता , मेरा वज़ूद ऐसा है !
दिलों में बस गया है जो ,फकत इक नाम ऐसा है ,
मिटाने से नहीं मिटता , मेरा वज़ूद ऐसा है !
मैं आगे हूँ या पीछे हूँ मगर फोकस में मैं ही हूँ ,
हटाने से नहीं हटता , मेरा वज़ूद ऐसा है !
मेरे दिल में उमड़ता मुल्क से जो इश्क -ए-समंदर ,
घटाने से नहीं घटता , मेरा वज़ूद ऐसा है !
अगर तूफ़ान हो तुम , मैं भी हूं जलता हुआ दीपक ,
बुझाने से नहीं बुझता ,मेरा वज़ूद ऐसा है !
शिखा कौशिक 'नूतन'

पिता हीरालाल कश्यप भी दोषी

 narendra kashyap family photo with himanshi के लिए इमेज परिणाम
      भारत वर्ष में दहेज़ को रोकने के लिए भारतीय दंड संहिता में भी प्रावधान हैं और इसके लिए अलग से दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम भी बनाया गया है जिसकी जानकारी आप मेरे ब्लॉग कानूनी ज्ञान की इस पोस्ट
''कानून है तब भी " से ले सकते हैं किन्तु इस सबके बावजूद दहेज़ हत्याओं में कमी नहीं आयी है और एक बार को गरीब तबके को छोड़ भी दें वो इसलिए कि पहले तो उनमे इसका इतना प्रचलन नहीं है क्योंकि इसके लिए बड़े तबकों के लोग यह कह देते हैं कि ''इन्हें लड़की मिलती ही कहाँ है ये तो लड़की को खरीदते हैं ''किन्तु अपने गिरेबान में अगर ये बड़े तबके झांक लें तो इनमे लड़की को खरीदने जैसी कुप्रथा तो नहीं अपितु लड़कों को बेचने जैसी माखन लपेट सुप्रथा का प्रचलन है और इसी तबके में आज भी लड़कियां दहेज़ के लिए मारी जा रही हैं ,जलाई जा रही हैं।
     और इसका जीता जागता प्रमाण है कल देश के ६९ वें गणतंत्र दिवस पर समाचारों की सुर्ख़ियों में रही यह खबर -''पिता मिनिस्टर तो ससुर सांसद रहे, फिर भी इतनी टॉर्चर हुई थी ये लड़की'' 
    कल इस मामले में कोर्ट का फैसला आया जिसमे पूर्व सांसद और बीजेपी नेता नरेंद्र कश्यप बहू को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में दोषी करार दिए गए हैं। उनकी पत्नी देवेंद्री और बेटे सागर को भी मामले में दोषी करार दिया गया है। पुलिस ने तीनों आरोपियों को अरेस्ट कर डासना जेल भेज दिया है। बता दें, नरेंद्र की बहू हिमांशी का शव 6 अप्रैल 2016 को ससुराल में बाथरूम में बरामद हुआ था।
     कोर्ट ने इस मामले में लड़की के ससुर ,सास व् पति को दोषी करार दिया है और ये ज़रूरी भी था क्योंकि बहू अपनी ससुराल में ही मरी थी और  घटनाक्रम भी उनके दोषी होने की गवाही दे रहा था। सम्पूर्ण घटनाक्रम के अनुसार -
- यूपी के गाजियाबाद जिले के कवि नगर इलाके के संजय नगर सेक्टर-23 में नरेंद्र कश्‍यप की फैमिली रहती है। बड़े बेटे डॉक्टर सागर की शादी हिमांशी से हुई थी।
- 6 अप्रैल 2016 को हिमांशी का शव बाथरूम में मिला था। उसके हाथ में रिवाॅल्वर भी बरामद हुई थी, जोकि पति सागर की थी।
- ससुरालवालों ने बताया था, बहू ने बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद कर खुद को गोली मार ली। उसे तुरंत यशोदा अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।
- हिमान्शी की शादी 27 नवंबर 2013 में हुई थी। उसने यूपी के बदायूं से पढ़ाई की थी। पिता हीरा लाल कश्यप पिछली बसपा सरकार में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री थे। उन्होंने ससुरालवालों के ख‍िलाफ दहेज हत्या का केस दर्ज कराया था।
पिता ने बताई थी बेटी की मौत की ये वजह
- हिमान्शी के पिता हीरा लाल कश्यप ने बताया , ''मैंने शव देखा तो बेटी के शरीर पर चोटों के निशान थे। आंखों में घूसे मारे गए थे, नाक टूटी थी, गाल लाल थे और बाल खींचे गए थे। सिर की हड्डी टूटी हुई थी। दो-दो गोली मारी गई थी।''
- ''हाथ मोड़ कर टेढ़े कर दिए गए थे। बेटी गाय की तरह थी, लेकिन उसे दहेज के लिए मार दिया। ससुरालवाले फॉर्च्यूनर कार और हार मांग रहे थे। बड़ी दर्दनाक तरीके से मारा उसे।''
      ये सब लड़की का बाप  कह रहा है और अपनी बच्ची  के लिए एक बाप का यह सब देखना असहनीय है किन्तु अगर गौर किया जाये तो क्या सिर्फ लड़की के ससुराल वालों को ही जिम्मेदार ठहराना  सही होगा? क्या लड़की के बाप या परिजनों की कोई जिम्मेदारी नहीं है इस दहेज़ हत्या में जबकि लड़की का बाप खुद कह रहा है -
- ''25 मार्च 2016 को बेटी आख‍िरी बार जब घर आई थी तो उसने बताया था कि दहेज के लिए हमेशा मार पड़ती है। पति भी प्रताड़ित करता है। उसके कुछ दिन पहले ही सागर ने उसे इतना मारा था कि कान में गंभीर चोटें आई थीं, जिसका इलाज चल रहा था।''
- ''वह ससुराल नहीं जाना चाहती थी, लेकिन मेरे समझाने के बाद गई। मैंने उससे कहा था कि कुछ दिन रुक जा, मैं कार दे दूंगा। वो बस मुझसे यही कहती थी, पापा मुझे यहां से ले चलो, ये लोग बहुत परेशान करते हैं।''
      क्या लड़की के ब्याह के बाद कोई ज़रूरी है कि लड़की अपनी ससुराल में ही रहे और वह भी तब जबकि वहां उसके जीवित रहने की सम्भावना ही न हो,शादी के बाद अक्सर बेटियां अपना सब कुछ खो देती हैं और उनकी स्थिति न घर की न घाट की धोबी के कुत्ते की तरह हो जाती है ससुराल वाले उसे दहेज़ के लिए मारपीट कर मायके भेजते रहते हैं और मायके वाले इस समाज में अपनी यह प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए ''कि उनकी बेटी ससुराल में भली-भांति रह रही है ''उसे बार बार कुछ न कुछ देकर लड़के वालों का मुंह बंद करने को ससुराल में धकेलते रहते हैं और इस तरह ससुराल वालों के मुहँ में दहेज़ के नाम पर वही काम कर देते हैं जो किसी के काटने पर कुत्ते के साथ होता है अर्थात जैसे कुत्ता जब किसी के काटता है तो उसके मुहं में खून लग जाता है और फिर वह बार बार काटता है ऐसे ही बार बार बेटी के साथ मारपीट होने पर भी जब मायके  वाले ससुरालियों की महत्वाकांक्षा पूरी करने को उन्हें कुछ न कुछ देते रहते हैं तो उनकी  यही आदत बन जाती है कि ''इसकी बेटी का कुछ भी करो यह यहीं भेजेगा इसे ''सोचकर वे अपनी बहु के साथ दुर्दांत अत्याचार करते भी नहीं रुकते और उसका एक परिणाम यही होता है कि या तो अपनी बहू से अपनी महत्वाकांक्षा पूरी न होते देख  ससुरालिए उसे निबटा देते हैं या फिर वह लड़की ही अपनी धोबी के कुत्ते वाली स्थिति देख आत्महत्या कर लेती है। 
      ऐसे में किसी बेटी या बहू की मृत्यु की जिम्मेदारी न केवल ससुरालियों की बनती है बल्कि मायके वालों की भी बनती है और ऐसे में अब दहेज़ कानून में संशोधन की परम आवश्यकता है। हर वह मामला जिसमे किसी भी लड़की की दहेज़ हत्या की बात सामने आती है उसमे ससुराल वालों के लिए तो कानून में प्रावधान है ही ,मायके वालों के लिए भी कुछ नए प्रावधान किये जाने चाहियें और जब दहेज़ देना भी अपराध है तो हर दहेज़ हत्या की रिपोर्ट मायके वालों के खिलाफ भी होनी चाहिए और उनसे भी यह जवाब माँगा जाना चाहिए कि -
-आपने शादी में कानून में अपराध होने के बावजूद जिस सामान की सूची दे रहे हैं ,वह कैसे दिया ?
-आपको दहेज़ की मांग का कब पता लगा ?
-जब ससुराल वालों ने सामान के साथ ही आने को कहा था तो आपने उसे कैसे वहां भेजा ?
-ससुराल वालों की दहेज़ की मांग को कानून का उल्लंघन करते हुए भी क्यों पूरा किया ?
-बेटी का भी घर  की संपत्ति में हिस्सा होते हुए आपने उसे जबरदस्ती दूसरे घर में कैसे भेजा ?
        इसी तरह से अगर कानून में मायके वालों पर भी कार्रवाही का इंतज़ाम होगा तो पहले तो बेटियों पर ज़ुल्म करने देने का अधिकार ससुराल वालों को देने के मायके वालों के हाथ बंधेंगे और साथ ही जो बहुत सी बार दहेज़ के झूठे केस दायर किये जाते हैं वे भी रुकेंगे क्योंकि बेटी कहूं या लड़की वह भी एक इंसान है और स्वयं अपनी मालिक है किसी अन्य की बांदी  या गुलाम नहीं। बार बार लड़की को मौत के मुंह में भेजने वाले हीरालाल कश्यप भले ही अब बेटी के लिए न्याय की मांग में आत्मदाह की घोषणा करें किन्तु हिमांशी की दहेज़ हत्या में वे भी नरेंद्र कश्यप जितने ही जिम्मेदार हैं और देखा जाये तो उससे भी ज्यादा क्योंकि उनके लिए तो वह दूसरे की लड़की थी पर हीरालाल का तो वह अपना खून थी। 
शालिनी कौशिक 
[कौशल ] 

मंगलवार, 23 जनवरी 2018

अभिमन्यु

अभिमन्यु
बनता जा रहा
आज का युवा
अपने ही चारों ओर
अपने ही द्वारा रचित
चक्रव्यूह में
अपने अंतर्द्वंद्वों को झेलता,
खुद से लड़ता,
स्वयं हथियार बन वार करता
स्वयं ढाल बन बचता।
स्वयं छिन्न-भिन्न हो, निशस्त्र होता।
स्वयं रथचक्र बन
स्वरक्षा हेतु घूमता ,
बनता जाता
क्या नियति के हाथों
इस बार भी धराशायी होगा?
या रण विजेता बन
लौटेगा सदर्प?
अभिमन्यु !!
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शालिनी रस्तौगी

गुरुवार, 11 जनवरी 2018

हाथ करें मजबूत ............

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भावनाएं वे क्या समझेंगे जिनकी आत्मा कलुषित हो ,
अटकल-पच्चू  अनुमानों से मन जिनका प्रदूषित हो .

सौंपा था ये देश स्वयं ही हमने हाथ फिरंगी के ,
दिल पर रखकर हाथ कहो कुछ जब ये बात अनुचित हो .

डाल गले में स्वयं गुलामी आज़ादी खुद हासिल की ,
तोल रहे एक तुला में सबको क्यूं तुम इतने कुंठित हो .

देश चला  है प्रगति पथ पर इसमें मेहनत है किसकी ,
दे सकता रफ़्तार वही है जिसमे ये काबिलियत हो .

अपने दल भी नहीं संभलते  कहते देश संभालेंगें ,
क्यूं हो ऐसी बात में फंसते जो मिथ्या प्रचारित हो .

आँखों से आंसू बहने की हंसी उड़ाई जाती है ,
जज्बातों को आग लगाने को ही क्या एकत्रित हो .

गलती भूलों  से जब होती माफ़ी भी मिल जाती है ,
भावुकतावश हुई त्रुटि पर क्यूं इनपर आवेशित हो .

पद लोलुपता नहीं है जिसमे त्याग की पावन मूरत हो ,
क्यूं न सब उसको अपनालो जो अपने आप समर्पित हो .

बढें कदम जो देश में अपने करने को कल्याण सभी का ,
करें अभिनन्दन आगे बढ़कर जब वह समक्ष उपस्थित हो .

हाथ करें मजबूत उन्ही के जिनके हाथ हमारे साथ ,
करे ''शालिनी ''प्रेरित सबको आओ हम संयोजित हों .
          शालिनी कौशिक 
           [कौशल ]